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7 May 2024 · 11 min read

अहाना छंद बुंदेली

अहाना बुंदेली के वह शब्द है , जो अपने आप में बहुत बड़ी बात को एक संक्षिप्त टुकड़े में कह देता है , यह छंद नहीं है , पर अहाना बुंदेली भाषा बोली का एक संक्षिप्त मारक क्षमता बाला कथन है | जो किसी को संकेत कर देता है | इसको कहावत या उसका लघु रुप भी कह सकते है (पर मुहावरा अहाना नहीं हो सकता है ) हालाकिं कहावत एक दिशा संकेत करती है , कहावतें संकेतात्मक संबंधी होती है , पर अहाना बुंदेली के आम बोलचाल परिचर्चा के कथन है , विस्तृत कहानी- कथन -आचरण को एक छोटे टुकड़े में कह देता है |

मुहावरे का प्रयोग वाक्यांश की भाँति किया जाता है जैसे – पेट में चूहे कूँदना = अर्थात भूख लगना ,(हमारे पेट में चूहें कूद रहे है , अर्थात भूख लग रही है
कहावत में जैसे – होनहार बिरवान के होत चीकने पात ,( अर्थात प्रतिभाशाली के लक्षण बचपन में ही ज्ञात हो जाते है
अहाना कहावत का लघु रुप कह सकते है
हर कहावत अहाना बन सकती है , पर हर अहाना कहावत नहीं बन सकता है |
बैसे पूर्व में हमने बुंदेली लोक गायन को , जिनकी कोई मापनी नहीं है , उनको हिंदी छंदों में बाँधा है , व कुछ नए छंदो को नामकरण दिया है , पर सबसे बड़ी कमी मेरी खुद की लापरवाही व व्यस्तता भी रही है | जिसे अब क्रमशा: प्रस्तुत करुँगा |

अहाना को मैने 16 मात्रा (,चौपाई चाल ) में बाँधा है , व लिखना प्रारंभ किया है , व सभी मित्रों से भी आग्रह करता हूँ कि , बुंदेली में कई अहानें है , उनको 16 मात्रा में बाँधकर चौपाई चाल में लिखें |
बैसे इसको किसी एक निश्चित मापनी बनाकर आप लिख सकते है ,
पर हमें चौपाई चाल उपयुक्त व लय युक्त लगी है | कुछ अहाने चौबोला छंद में भी लिखे है , पर चौपाई चाल सटीक लगी है

चार चरण में लिखना चौपाई चाल अहाना कहलाएगा, जिसमें अहाना चौथे चरण में जुड़ेगा , व चार चरण के बाद , एक पूरक चरण , व एक टेक चरण जोड़ने पर अहाना गीत कहलाएगा |

कुछ अहाने संकेत कर रहा हूं , जो निम्नवत् है ~ जैसे-

चना धना दो घर में नइयाँ
परे अकल पै अब तो पथरा
नँइँ हाथी बदत अकौआ से
अड़ुआ नातो, पड़ुआ गोता
अपनौ गावौ अपनौ बाजौ
अँदरा लोड़ लगी बँदरा में

ऐसे बहुत से अहाने है
सादर
सुभाष सिंघई
~~~~~~

बुंदेली अहाना – (16 मात्रिक ) चौपाई चाल

|| ऊँट चुरा रय न्योरे – न्योरे ||

गुलिया धपरा घर में फोरे |
ढे़र लगो है घर के दोरे |
बन रय सबके आगे भोरे |
ऊँट चुरा रय न्योरे – न्योरे |

भड़याई कौ माल पचाबै |
अपनी मैनत कौ बतलाबै |
दिखे शराफत गिरमा टोरे |
ऊँट चुरा रय न्योरे – न्योरे |

ईमानी कौ तिलक लगाबै |
सबखौ अपनी छाप दिखाबै ||
माल मुफत कौ पैला रोरे |
ऊँट चुरा रय न्योरे – न्योरे ||

बदमाशी में नम्बर अब्बल |
गाँव भरे कै खा गय डब्बल ||
पकर गये तो दांत निपोरै |
ऊँट चुरा रय न्योरे – न्योरे ||

एक रुपैया लैकै आने |
तीन अठन्नी जिन्हें भँजाने ||
बैई सबकै काज बिलोरे |
ऊँट चुरा रय न्योरे – न्योरे ||

सुभाष सिंघई
~~~~~~~~~

16 मात्रिक बुंदेली अहाना (चौपाई चाल )

|| घर -घर में हैं मटया चूले ||

सबके घर की मिली कहानी |
कितउँ धूप है छाया – पानी |
कौनउँ करबै बात बिरानी |
दिखबै पूरी खेंचा तानी ||

लोग काय पै फिरतइ फूले |
घर -घर में हैं मटया चूले ||

लगौ जमड़खा चौराहे पै |
मसकत बातें अब काहे पै ||
नँई छिपत कनुआँ की टैटें |
कढ़त बा़यरै नकुआ घैटें ||

अलग दिखातइ लँगड़ें लूले |
घर – घर में है मटया चूले ||

नँईं छिपत टकला की गंजी |
लिखी रात ईसुर लो पंजी ||
चीन लेत है सब लबरा खौं |
दाग बनत है चितकबरा खौं ||

उनकी कै रय अपनी भूले |
घर – घर में है मटया चूले ||

साँसी कत है रामप्यारी |
माते के घर घुसी दुलारी ||
परत सबइ के उनसे अटका |
कौन बिदै ले आकै खटका ||

बात चिमा गय इतै कथूले |
घर – घर में है मटया चूले ||

बै सब उनकी बातें जाने |
फिर भी रत हैं खूब चिमाने ||
तरी सबइ की यहाँ टटोली |
दिखी सुभाषा सबखौं पोली ||

मौं पै कैबै सबरै कूले |
घर – घर में है मटया चूले ||

ऊकै घर की चतुर लुगाई |
बुला लई है सगी मताई ||
सास पार दइ ढ़ोरन बखरी |
कथा सुना गय कल्लू सबरी ||

सबइ जगाँ है जइ घरघूले |
घर – घर में है मटया चूले ||

सुभाष सिंघई
~~~~~~~

16 मात्रिक (बुंदेली अहाना )चौपाई चाल

|| फिरतइ जैसे गदा हिराने ||

ढ़ोर धरै अक्कल से पूरे |
खाक छानबै जाबै घूरे ||
करतइ सबरै काम नसाने |
फिरतइ जैसे गदा हिराने |

दैत दौंदरा माते रातन |
गाँव भरै में कत है मातन ||
आतइ घर में भौंत उराने |
फिरतइ जैसे गदा हिराने ||

करें ऊँट की चोरी न्योरें |
तकत परोसन खपरा फोरें ||
बातै करबै खोज बहाने |
फिरतइ जैसे गदा हिराने ||

पंगत में जा लडुआ सूटे |
कभऊँ बदैं न घर के खूटे ||
चिलम तमाकू के भैराने |
फिरतइ जैसे गदा हिराने ||

सबइ चौतरा जाकै थूकै |
फिरत भभूति खौ अब सूकै |
लयै हाथ कै चना घुनाने |
फिरतइ जैसे गदा हिराने ||

चित्त न दैबै कौनउँ बातें |
सूझत रत है जिनखौ घातें ||
कौउँ न आबै तेल लगाने |
फिरतइ जैसे गदा हिराने ||

आँखें फूटी हो गय काने |
कत है हम तो भौत पुराने ||
फैकत फिर रय गली मखाने |
फिरतइ ‌‌ जैसे गदा हिराने ||

सुभाष सिंघई
~~~~~

बुंदेली_अहाना_गीत , (16 मात्रिक)

|| गिरदौना-सी मूड़‌ हिलाते ||

काम परौ जनता लौ आकैं |
वोट कितै है नेता ताकैं ||
भाषण में सब गप्पें फाँकैंं |
अपनी-अपनी ढींगैं हाँकैं ||

हाथ जौर कै सम्मुख आते |
गिरदौना -सी मूड़‌ हिलाते ||

पाँच साल कै राजा बनने |
तब झंडा की डोरी ततने ||
बात काउ की तब नइँ सुनने |
रकम देख कै रुइ सी धुनने ||

आगे पाछे चमचा राते |
गिरदौना -सी मूड़‌ हिलाते ||

सबइ दलन के लगने दौरा |
काने सबकै चाने कौरा ||
बातें करने है मिठबोली |
बाँट संतरा जैसी गोली ||

पुटया- पुटया वोट चुराते |
गिरदौना -सी मूड़‌ हिलाते ||

जनता हित की बै कब सौचें |
सब नेतन में दिखबें लौचें ||
जनता चीथैं धीरें धीरें |
पोल खुले तो दाँत निपौरें ||

मूड़ धुनक दैं औसर पाते |
गिरदौना -सी मूड़‌ हिलाते ||

सबखौ अपनी गोट मिलाने |
करयाई खौ खूब झुकाने ||
सबखौ नकुआ चना चबाने |
कात सुभाषा सुनो अहाने ||

नेता लल्लू खूब बनाते |
गिरदौना -सी मूड़‌ हिलाते ||

सुभाष सिंघई

~~~
बुंदेली अहानो , (16 मात्रिक )

|| जनता परखत उड़त चिरैया ||

राम नाम से काहै छरकत |
समझ न आबै मौ खौं हरकत ||
मंदिर आकैं कौउँ बनाबैं |
पर दरसन खौं सबरै जाबैं ||

की कै मन कौ कौन रबैया |
जनता परखत उड़त चिरैया ||

बनकै जंगी कूँदे नेता |
आज देश के सबइ प्रणेता ||
आकै सबलौ झुक झुक जाने |
कल से बहरै , नँई सुनाने ||

साड़ें साती लगबैं ढैया |
जनता परखत उड़त चिरैया ||

गाँव भरै में दैत दौंदरा |
पतौ चलत ना कौन गौंदरा ||
बनत सयानै खबखौ काँटै |
भइयाई कौ भन्ना बाँटै ||

कौ चौरन कौ माल खपैया |
जनता परखत उड़त चिरैया ||

मंदिर में पूजा करवाई |
रात करी है मइँ भड़याई ||
हँस कै कत है उतै बिहारी |
हमें सिखा रय तुम रँगदारी ||

पकरै गय तो दाँत दिखैया |
जनता परखत उड़त चिरैया ||

खुद कौ लरका है गर्रानौ |
दैत दूसरे घरन उरानौ ||
कनुआ अपनो टैट निपौरे |
पर दूजे की फुली निहौरे ||

नचनारी से बड़ौ नचैया |
जनता परखत उड़त चिरैया ||

~~~~~~~~~~~

16 मात्रिक बुंदेली अहाना

|| अक्कल गइ है भैंस चराने ||

नन्ना लग रय हैं खिसयाने |
हरे चना ही लगे पटाने ||
मूड़ खुजाबै आयँ उराने |
अक्कल गई है भैस चराने ||

मंदिर ‌ जाबै पेट ‌‌ पिराने |
करें कीरतन जाकै थाने |
लोग कात तब बात दबाने |
अक्कल गइ है भैस चराने ||

काम उबाड़ेै घिची बिदानै |
साँसी बातें सबइँ दबाने ||
चिमरी बकला जिनै चबाने |
अक्कल गइ है भैस चराने ||

फूली नस खौं नँईं दबाने |
आबर जाबर मौं से खाने |
तकुआ टेड़ौ जिनै बनाने |
अक्कल गइ है भैस चराने ||

हाथ डारतइ काम नसाने |
दौना पातर सबइँ भिड़ाने |
कारण पूछौ गटा नचाने |
अक्कल गइ है भैस चराने ||

अपनी मूँछे नँईं झुकाने |
चार जनन में नाक फुलाने ||
करत गुँटर गूँ कछू सयाने |
अक्कल गइ है भैस चराने ||

कात सुभाषा नये तराने |
फेकें अपने खुदइँ मखाने ||
नँईं मदद अब कौनउँ चाने |
अक्कल गइ है भैस चराने ||

चढ़े पड़ा ससुरारे जाने |
खुद रमतूला बैठ बजाने |
चार जनन में नँईं लजाने |
अक्कल गइ है भैंस चराने ||

सुभाष सिंघई
~~~~~~~~~~~

|| उनकी तरी न कौनउँ पाबे ||

माते लगबें बड़े सयाने |
लगतइ सबखौ बै उकताने ||
गयँ बल्दोगढ़ तोप चलाने |
चार जनन में रार ‌कराने ||

नाँय माँय भी बात भिड़ाबे |
उनकी तरी न कौनउँ पाबे ||

सबकी चलत गैल खौ देखें |
कौन करत का सबको लेखें ||
खोल कुंडली पूरी पढ़बै |
सबकी आकैं छाती चढ़बै ||

सबके घर की कथा सुनाबे |
उनकी तरी न कौनउँ पाबे ||

गाँव भरै के पुंगा जौरे ‌|
तकत सबइ के वह है दौरे ||
बने काम भी सबइ बिलौरे |
कछू कहौ तो बनबें भौरेे ||

खुद खौ हरिश्चंद्र भी काबे |
उनकी तरी न कौनउँ पाबे ||

जिनकी निपटे लगी पुरानी |
ऊ मैं जौरत ‌ नई कहानी ||
आग लगा घी ऊमै ‌ डारें |
चलबा दें फिर से तलवारें ||

जिनखौं साजौ नँई पुसाबे ‌|
उनकी तरी न कौनउँ पाबे ||

चाल चलन भी नौनों नइयाँ |
ऐचक ताना लगबे मुइयाँ ||
खरयाटो दयँ शाम सुबेरें |
बउँए बिटियाँ सबकी हेरें ||

अपने खौं जौ तोप बताबे |
उनकी तरी न कौनउँ पाबे ||

सुभाष सिंघई
~~~~~~~~~~

(16 मात्रिक )
बुंदेली अहाना –
||मूरख के घर दुखड़ा रोबो ||

काम बिगारौ अपनौ खुद ही |
कौन समारै जब भी जिद की |
साजौ घी कौंदन में खोबो |
मूरख के घर दुखड़ा रोबो |

परत जौन पै आफत आकै |
बोइ‌ तरइयाँ ऊपर ताकै ||
हौत अलग से पथरा ढोबौ |
मूरख के घर दुखड़ा रोबौ ||

सबखौं अपनी खाज खुजाने |
नँईं दूसरे आँय मिटाने ||
लगे पड़ा-सौ सबखौ दोबौ |
मूरख के घर दुखड़ा रोबौ ||

चार जनन की बात न मानी |
खुद ही बन गय पूरे ज्ञानी ||
लगत खाट पै सबखौं सोबौ |
मूरख के घर दुखड़ा रोबौ ||

अपनी हाँकत फाँकत बातें |
उल्टी आबें चलती घातें ||
फटे चींथरा खुद ही धोबौ |
मूरख के घर दुखड़ा रोबौ ||

परै मुडी पै आफत जिनखौ |
बैइ खौजतइ मूसर किनखौ ||
लगबै अकल अजीरन हौबौ |
मूरख के घर दुखड़ा रोबौ ||

सुभाष सिंघई
~~~~~~~~~~

(16 मात्रिक चौपाई चाल )
अहाना गीत

|| हमइँ बुरय हैं तुम हौ साजे ||

औदी सूदी सबइ तुमाई |
चित्त पट्ट भी तुमरी भाई ||
लगे दाग खौं कत हो काजर |
मूरा तुमरे हौबें गाजर ||

फूटै भाँड़ै बन गय बाजे |
हमइँ बुरय हैं तुम हौ साजे ||

अपनी- अपनी तुम हौ धौंकत |
सबइ काम में तुम हौ लौंकत ||
चार जजन की बात न मानौ |
अपनौ रौपत सदा धिगानौ ||

सबइँ जगाँ पै अपुन बिराजे |
हमइँ बुरय हैं तुम हौ साजे ||

हौत गाँव में जब भड़याई |
जानत सब है लोग लुगाई ||
हाथ अपुन नें कितनौ डारो |
कीकौ खोलौ तुमने तारो ||

बदमासन कै हौ महराजे |
हमइँ बुरय हैं तुम हौ साजे ||

बिदै दैत हौ तुम अड़पंचा |
फैकत हौ फिर अपने कंचा ||
सबरै झारत तुमरो दौरो |
संजा तक है करत निहौरो ||

बासे लडुआ बनतइ ताजे |
हमइँ बुरय हैं तुम हौ साजे ||

रामदुलारी गई चिमानी |
बा जानत है सबइ कहानी ||
किते डरत है राते डेरा |
बनै फिरत हौ फिर भी शेरा ||

करिया भाँड़े सबने माजे |
हमइँ बुरय हैं तुम हौ साजे ||

सुभाष सिंघई

~~~~~~~~

बुंदेली अहानो (16 मात्रिक )

|| फोर पोतला माते आयै ||

काम न पूरो उनने देखो |
हौजे अब तो मन में लेखो |
देखे बदरा कारै छायै |
फोर पोतला माते आयै ||

घाम कडै पै फेंकी गुरसी |
धूप सेंकवें बैठे कुरसी ||
अब पानी भी कौन पिलायै |
फोर पोतला माते आयै ||

तीन दिना से सपरौ नइयाँ |
पानी बरसे कत हैं सइयाँ ||
घूम रयै है बिना नहायै |
फोर पोतला माते आयै ||

घर की खाली हौ गइँ हौंदी |
माँज मूँझ कै कर दइँ औंदी ||
आसमान से आस लगायै |
फोर पोतला माते आयै ||

मातिन कैबै काम उबाड़ै |
करबै माते रत है ठाडै ||
उठा कुआ से रस्सा लायै |
फोर पोतला माते आयै ||

पंचा धोती सब बनियाने |
सबइ भिड़ी है कहे सयाने ||
पानी नइयाँ कौन सुखायै |
फोर पोतला माते आयै ||

सुभाष सिंघई

~~~~

चौबोला छंद (या 15 मात्रा का उल्लाला छंद द्वितीय ),
अंत लगा (12) सही निर्वाह 212 (रगण)

बुंदेली अहाने पर एक रचना निवेदित है –
||| तब पंडित से का पूछने |||

घर में नइयाँ भँगिया भुजी |
सिलबटरी खाली पुजी ||
आबर जाबर मौं ठूसने |
तब पंडित से का पूछने ||?

सपरन जातइ न कभउँ तला |
मैल टिपरियन चिपके गला ||
नँईं खुपड़िया जब ऊँछने |
तब पंडित से का पूछने ||?

घूरै हौ गय जिनके अटा |
फिर भी काड़ै फिरतइ गटा ||
रात परोसी घर ढूँकने |
तब पंडित से का पूछने ?

बगरा आए घर की कढ़ी |
आँखें लग रइँ जिनकी चढ़ी |`
कत है अब निबुआ चूसने |
तब पंडित से का पूछने ?

घरै कुँवारै पसरे डरे |
शकल लगत जैसे अधमरे ||
जिनखौं रडुबाँ ही घूमने |
तब पंडित से का पूछने ||?

दारू पीकै सब लवँ मिटा |
लगे बोतलन के घर चिटा ||
देख परौसन जब हूँसने |
तब पंडित से का पूछने ||?

यैबी पूरै पक्कै दुता |
निजी चामरौ लवँ खुता ||
कौड़इयाँ दै जब मूतने |
तब पंडित से का पूछने ||?

साँप सरीकौ है फूसने |
भर पंचायत में थूकने ||
जब भड़या घर में घूसने |
तब पंडित से का पूछने ||?

चना जिनै कच्चे हूँकने |
आगी में भी नँइँ भूँजने ||
माल मुफत कौ जब सूटने |
तब पंडित से का पूछने ||?

सुभाष सिंघई
~~~~~~~~~~

बुंदेली चौपाइयाँ
(बुंदेली शब्दों का आनंद लीजिए 🙏)

गुंडी घैला और कसेड़ी |
गड़ी डारिया भूले छेड़ी ||
हौदी आँगन की है फूटी |
मिचुआ पाटी खटिया टूटी ||

बनी घिनोंची घर में फौड़ी |
गंगासागर टोंटी तोड़ी ||
कुल्लड़ नइयाँ आज सुहाने |
दौना पातर. सबइ हिराने ||

बूड़ी बउँ की पिड़ी हिरानी |
सारौटें भी गँईं बिलानी |
उखरी मूसर अब दन्नेंती |
चकिया फोड़ी लेकै गेंती ||

पौर चौतरा ठाठ बड़ेरा |
इनकौ उठ गवँ पूरा डेरा ||
नहीं डोरिया घर में कथरी |
पुती बची ना चूना बखरी ||

कौ जानत है आज कलेबा |
बूड़ी दादी नइयाँ देबा ||
हौत नासता चाय ढ़ँगौरी |
गुटका खाकै दाँत निपौरी ||

मठा महेरी लपसी भूले |
माटी के सब फौरे चूले ||
महुआ डुबरी लटा न खाते |
तेली खाने मुँह बिचकाते ||

बथुआ भाजी छोड़ निगौना |
पनौ आम अब नँईं सलौना |
घर में नइयाँ आज अटालौ |
चीज काम की जीमें डालौ ||

भूल गये सिलबट्टा चटनी |
अब तो मिक्सी बन गइ पिसनी ||
माँड़ नँई अब चाँउर खैवै |
परौ कुकर में सीटी दैवै ||

नहीं डेकची झारे तँगरा |
नहीं कोयला के अब अँगरा ||
खल्ल मुसैया कौ अब कूटे |
पीतर छिलनी छिलना टूटे ||

पंचा अल्फी कौउँ न जानै |
नँई लँगोटा अब अजमानै ||
नँईं जानते पगड़ी टैरैं |
खिचउँ पनैया कैसे पैरैं ||

धरौ कौनिया रौबे हुक्का |
पीबें बारे मर गय कक्का ||
मर गय नन्ना नरुआ कूटत |
भरे चिलम में दिन भर सूटत ||

बब्बा कत काँ गइ बकरी |
प्रानन की प्यारी चितकबरी ||
बउँ धन कत अच्छी दयँ चकरी |
चिल्लाबो ऊखौ है अखरी ||

झार डुकइयाँ सबरी बखरी‌ |
भरत हाथ से खुद ही गगरी ||
लीप पोत दइ फूटी उखरी |
कत पैलउँ से हो गइ सकरी ||

सबकी बाँदत रत है ठठरी |
बऊ धना कत आई नखरी ||
सबइ घरन की बनबै खबरी |
मौ से बकबै गारी सबरी ||

उठकै डुकरौ बड़े सकारै |
भाँड़ै माँजै बिना बिचारै ||
बउँ धन से कत भर लौ खैपैं |
डाँट लगाबै तनिक न झैपैं ||

करने है सब काम सँकारें |
शब्द अर्थ अब सबइ विचारें |
भूल रयै बुंदेली बानी |
तकै ‘सुभाषा’ नँई कहानी ||

©®सुभाष सिंघई

~~~~~~~

बुंदेली चौपाइयाँ (बुंदेली शब्दों का आनंद लीजिए 🙏)

गुंडी घैला और कसेड़ी |
गड़ी डारिया भूले छेड़ी ||
हौदी आँगन की है फूटी |
मिचुआ पाटी खटिया टूटी ||

बनी घिनोंची घर में फौड़ी |
गंगासागर टोंटी तोड़ी ||
कुल्लड़ नइयाँ आज सुहाने |
दौना पातर. सबइ हिराने ||

बूड़ी बउँ की पिड़ी हिरानी |
सारौटें भी गँईं बिलानी |
उखरी मूसर अब दन्नेंती |
चकिया फोड़ी लेकै गेंती ||

पौर चौतरा ठाठ बड़ेरा |
इनकौ उठ गवँ पूरा डेरा ||
नहीं डोरिया घर में कथरी |
पुती बची ना चूना बखरी ||

कौ जानत है आज कलेबा |
बूड़ी दादी नइयाँ देबा ||
हौत नासता चाय ढ़ँगौरी |
गुटका खाकै दाँत निपौरी ||

मठा महेरी लपसी भूले |
माटी के सब फौरे चूले ||
महुआ डुबरी लटा न खाते |
तेली खाने मुँह बिचकाते ||

बथुआ भाजी छोड़ निगौना |
पनौ आम अब नँईं सलौना |
घर में नइयाँ आज अटालौ |
चीज काम की जीमें डालौ ||

भूल गये सिलबट्टा चटनी |
अब तो मिक्सी बन गइ पिसनी ||
माँड़ नँई अब चाँउर खैवै |
परौ कुकर में सीटी दैवै ||

नहीं डेकची झारे तँगरा |
नहीं कोयला के अब अँगरा ||
खल्ल मुसैया कौ अब कूटे |
पीतर छिलनी छिलना टूटे ||

पंचा अल्फी कौउँ न जानै |
नँई लँगोटा अब अजमानै ||
नँईं जानते पगड़ी टैरैं |
खिचउँ पनैया कैसे पैरैं ||

धरौ कौनिया रौबे हुक्का |
पीबें बारे मर गय कक्का ||
मर गय नन्ना नरुआ कूटत |
भरे चिलम में दिन भर सूटत ||

बब्बा कत काँ गइ बकरी |
प्रानन की प्यारी चितकबरी ||
बउँ धन कत अच्छी दयँ चकरी |
चिल्लाबो ऊखौ है अखरी ||

झार डुकइयाँ सबरी बखरी‌ |
भरत हाथ से खुद ही गगरी ||
लीप पोत दइ फूटी उखरी |
कत पैलउँ से हो गइ सकरी ||

सबकी बाँदत रत है ठठरी |
बऊ धना कत आई नखरी ||
सबइ घरन की बनबै खबरी |
मौ से बकबै गारी सबरी ||

उठकै डुकरौ बड़े सकारै |
भाँड़ै माँजै बिना बिचारै ||
बउँ धन से कत भर लौ खैपैं |
डाँट लगाबै तनिक न झैपैं ||

करने है सब काम सँकारें |
शब्द अर्थ अब सबइ विचारें |
भूल रयै बुंदेली बानी |
तकै ‘सुभाषा’ नँई कहानी ||

©®सुभाष सिंघई
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Language: Hindi
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खिड़की के बाहर दिखती पहाड़ी
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*भोजन की स्वच्छ रसोई हो, भोजन शुचि हाथों से आए (राधेश्यामी छ
*भोजन की स्वच्छ रसोई हो, भोजन शुचि हाथों से आए (राधेश्यामी छ
Ravi Prakash
भोले बाबा की महिमा भजन अरविंद भारद्वाज
भोले बाबा की महिमा भजन अरविंद भारद्वाज
अरविंद भारद्वाज
किताब
किताब
Neeraj Agarwal
कफन
कफन
Kanchan Khanna
3650.💐 *पूर्णिका* 💐
3650.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
World Emoji Day
World Emoji Day
Tushar Jagawat
तप रही जमीन और
तप रही जमीन और
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
मेरे दो अनमोल रत्न
मेरे दो अनमोल रत्न
Ranjeet kumar patre
मैं हूं न ....@
मैं हूं न ....@
Dr. Akhilesh Baghel "Akhil"
साँसों के संघर्ष से, देह गई जब हार ।
साँसों के संघर्ष से, देह गई जब हार ।
sushil sarna
मैं कौन हूँ
मैं कौन हूँ
Chaahat
निभाना आपको है
निभाना आपको है
surenderpal vaidya
नज़र मिल जाए तो लाखों दिलों में गम कर दे।
नज़र मिल जाए तो लाखों दिलों में गम कर दे।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
यादें
यादें
Tarkeshwari 'sudhi'
आसान बात नहीं हैं,‘विद्यार्थी’ हो जाना
आसान बात नहीं हैं,‘विद्यार्थी’ हो जाना
Keshav kishor Kumar
चंद शब्दों से नारी के विशाल अहमियत
चंद शब्दों से नारी के विशाल अहमियत
manorath maharaj
वंसत पंचमी
वंसत पंचमी
Raju Gajbhiye
कृष्ण हूँ मैं
कृष्ण हूँ मैं
DR ARUN KUMAR SHASTRI
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