अहसास
तुम होते हो पास मेरे,
खिल उठते अहसास मेरे
गूंज उठे शहनाईयां,
इस अंत मन के सहरा में।
उड़ने को उन्मुक्त पंछी,
आतुर है नेह गहरा में।
जीवन राह के हमराही,
भरते मन विश्वास मेरे।
तुम होते हो पास मेरे।
निर्झरिणी मन बन जाता,
उदधि की थाह पाने को।
कलकल की ध्वनि शोर करे,
सानिध्य प्रीतम पाने को।
खिलते बिखरते सरस भाव,
बेमौसम मधुमास मेरे।
तुम होते हो पास मेरे।
बुन लेती शब्दों का हार,
गीत गजल कविता संसार।
साज -स्वर करते नेह राग,
झंकृत होते मन के तार।
अरमान सजे खास मेरे,
तुम होते हो पास मेरे।
खिल उठते अहसास मेरे।
संतोषी देवी
शाहपुरा जयपुर राजस्थान।