अहम्
उस दिन मै खिन्न मन से घर से निकला। मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। क्योंकि लोग मेरी बात मान नहीं रहे थे । और अपनी अपनी मर्जी की कर रहे थे।
मैं यूँँ ही चलता गया चलते चलते मैंने देखा कोई परछाई मेरा पीछा कर रही है। मैंने परछाई से पूछा भाई तुम कौन हो ? क्या तुम कोई भूत हो? जो मेरा पीछा कर रहे हो ? उसने कहा मैं भूत नहीं मैं तुम्हारा वर्तमान हूँँ। और वर्तमान में तुम्हारा अहम् हूंँ ।
तुम जहां जहां जाओगे मैं तुम्हारे पीछे चलूँँगा।
जब तक तुम मुझे छोड़ने का निश्चय नहीं कर लेते तब तक मैं तुम्हारे संग ही रहूँँगा । तुम्हारे मन की परेशानी के लिए मैं ही जिम्मेवार हूँँ । जब तक मैं तुम्हारे संग रहूँँगा तुम्हारी परेशानी खत्म नहीं होगी। दरअसल तुम्हारे सारी परेशानी की जड़ मैं ही हूँँ ।
जिसकी वजह से तुम्हारे संगी साथी तुम्हें अपनाने से कतराते हैं ।और तुम्हारी बातों को नहीं मानते। क्योंकि मैने तुम्हारे अंतःकरण में घर बना लिया है । जब तक मुझे इस घर से निकाल बाहर नहीं करते तब तक तुम्हें शाँँति नहीं मिल सकती ।
मेरी वजह से तुम दूसरों के तर्कों को नकार देते हो । और अपने तर्क को ही श्रेष्ठ मानकर दूसरों को उसका पालन करने के लिए बाध्य करते हो ।
जो उन्हें मान्य नहीं है । मेरी वजह से तुमने कई लोगों को अपना शत्रु बना लिया है । मेरी वजह से तुम्हारे सद्भाव में कमी आई है ।और तुम्हारे विचारों में दूसरों के विचारों का समावेश असंभव सा हो गया है ।
जिस कारण तुम अपने ही विचारों को ही श्रेष्ठ मानकर उसको प्रस्तुत करते हो । मेरे कारण तुम्हारी प्रज्ञा शक्ति प्रभावित होने लगी है । जिसका दूरगामी प्रभाव तुम्हारे व्यवहार पर पड़ने लगा है ।
लोग तुम्हें घमंडी और स्वार्थी समझने लगे हैं । यदि तुम अपने वर्तमान को सुधारना चाहते हो ।
और सौहार्द्र को बढ़ावा देना चाहते हो ।
तो तुम्हे अटल निश्चय लेकर मुझे त्यागना पड़ेगा ।
और सद्भाव को आगे बढ़ाकर शांतिपूर्ण और सह अस्तित्व के जीवन की परिभाषा को सार्थक करना होगा ।