Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
13 Dec 2019 · 3 min read

‘अहंकार’

अभी रुक्मिणी आँफिस पहुँची ही थी कि चपरासी ने आकर बोला मैडम बुला रही हैं। रुक्मिणी अपना बैग रख कर फौरन अपनी बास के पास पहुँची। मैडम सुरभि अपने कमरे में अपने पुराने अंदाज में यों बैठी थी मानों जग जीत कर आयी हों।रुक्मिणी ने प्रातः अभिनंदन के साथ कमरे में प्रवेश किया। सुरभि मैडम ने मुस्कुराहट के साथ अभिनंदन स्वीकार किया। किन्तु ये मुस्कुराहट सहज नहीं बल्कि कुटिल थी। फिर कहा, “क्या रुक्मिणी तुम से एक काम भी सही नहीं होता। ये फाइल देखो। इसे फिर से तैयार करो।” “लेकिन मैम आपने जैसा कहा था मैनें बिल्कुल वैसे ही इसे तैयार किया है।”रुक्मिणी ने कहा। सुरभि मैम के तेवर चढ़ गये और कहा, “नहीं तुम्हे इसको फिर से बनाना पड़ेगा, ले जाओ ये फाइल।” दुःखी मन से रुक्मिणी फाइल लेकर अपने कमरे में आ गयी। अतिरिक्त 3 घण्टे वह मेहनत कर के उस फाइल को तैयार की थी। इस काम की वजह से वह अपने 2 वर्ष के बच्चे को छोड़कर आफिस में रात 8 बजे तक रुकी रही। ” क्या हुआ रुक्मिणी?” सहकर्मी विमला ने पूछा तो रुक्मिणी रूआँसी हो गयी और बोली, “कुछ नहीं मेरी किस्मत है।” विमला ने कहा, “किस्मत को दोष क्यों देती हो, सुरभि मैम का स्वभाव ही खराब है। और यहाँ येबात किसे नहीं पता। वो इतनी अहंकारी है कि उन्हें इस बात का एहसास भी नहीं होता कि वो क्या कह रही है और क्या कर रही हैं।जब तक दूसरों को परेशान नहीं कर लेती तब तक उनका खाना नहीं पचता। और फिर उनके चमचे उन्हें और अहंकारी बनाने में उनकी मदद करते हैं।” “परेशानी तो यही है विमला दीदी कि सभी को अपनी पड़ी है। जानें क्या मिलने वाला है। मैं तो दुःखी हो गयी हूँ छोड़ दूँगी नौकरी।” उदास मन से रुक्मिणी ने कहा। “बिल्कुल नहीं, तुम नौकरी नहीं छोड़ोगी। मैं तुम्हारे साथ हूँ बोलो क्या करना है फाइल में?” विमला ने बड़े आत्मविश्वास से कहा। ” पता नहीं दीदी बस कहा है फिर से बनाओ।” रुक्मिणी ने अनमने भाव से कहा। “हाँ तो ठीक है जब पता नहीं तो इन्हीं पेजों को नयी फाइल में लगा कर थोड़ी देर मेंं चपरासी से भिजवा दो।” विमला ने कहा। रुक्मिणी चिन्ता में पड़ गयी कहा “पर दीदी ये तो गलत है वही फाइल? “क्यो? गलत क्यों है? जब पता ही नहीं, दुबारा भी वही भेजो। वैसे भी उसका मुँह सड़ा है सड़ा ही रहेगा।” विमला ने समझाया। “लेकिन….।” रुक्मिणी घबरायी। “अरे कुछ घबराने की जरूरत नहीं। मैं जैसा कहती हूँ वैसा करो।” विमला ने समझाया। रुक्मिणी ने वैसा ही किया और सोच लिया जो होगा देखा जायेगा। फाइल लेकर चपरासी सुरभि मैडम के पास गया और फाइल दे दी।सुरभि ने रुक्मिणी को बुलवाया। डरते-डरते रुक्मिणी सुरभि मैम के कमरे में गयी। “तुमने इसमें सुधार कर दिया रुक्मिणी?” सुरभि ने पूछा। “जी मैम” डरते-डरते रुक्मिणी ने जवाब दिया। “यही एक बार में करती तो कितना अच्छा होता। ठीक है तुम जाओ।” सुरभि ने कहा।रुक्मिणी के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। वह मन ही मन मुस्कुराते हुये वापस आ गयी। उसने विमला दीदी की तरफ देखा और मुस्कुराने लगी। विमला दीदी ने उसे प्यार भरी नज़रों से देखा और थम्स अप किया।

Language: Hindi
3 Likes · 2 Comments · 552 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
दर्द -दर्द चिल्लाने से सूकून नहीं मिलेगा तुझे,
दर्द -दर्द चिल्लाने से सूकून नहीं मिलेगा तुझे,
Pramila sultan
ग़ज़ल _ सर को झुका के देख ।
ग़ज़ल _ सर को झुका के देख ।
Neelofar Khan
*सत्संग शिरोमणि रवींद्र भूषण गर्ग*
*सत्संग शिरोमणि रवींद्र भूषण गर्ग*
Ravi Prakash
1
1
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
नवंबर की ये ठंडी ठिठरती हुई रातें
नवंबर की ये ठंडी ठिठरती हुई रातें
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
अगर
अगर
Shweta Soni
चलो...
चलो...
Srishty Bansal
ऐसा क्या लिख दू मैं.....
ऐसा क्या लिख दू मैं.....
Taj Mohammad
गुम है
गुम है
Punam Pande
बाबुल का आंगन
बाबुल का आंगन
Mukesh Kumar Sonkar
ये दुनिया
ये दुनिया
DR ARUN KUMAR SHASTRI
"मित्रों के पसंदों को अनदेखी ना करें "
DrLakshman Jha Parimal
Untold
Untold
Vedha Singh
🙅भूलना मत🙅
🙅भूलना मत🙅
*प्रणय*
* काव्य रचना *
* काव्य रचना *
surenderpal vaidya
पग मेरे नित चलते जाते।
पग मेरे नित चलते जाते।
Anil Mishra Prahari
उहे सफलता हवय ।
उहे सफलता हवय ।
Otteri Selvakumar
"बलवान"
Dr. Kishan tandon kranti
प्रेम और सद्भाव के रंग सारी दुनिया पर डालिए
प्रेम और सद्भाव के रंग सारी दुनिया पर डालिए
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
जिंदगी का नशा
जिंदगी का नशा
Chitra Bisht
दोहा
दोहा
गुमनाम 'बाबा'
खो जानी है जिंदगी
खो जानी है जिंदगी
VINOD CHAUHAN
कहते हैं मृत्यु ही एक तय सत्य है,
कहते हैं मृत्यु ही एक तय सत्य है,
पूर्वार्थ
वो आया इस तरह से मेरे हिज़ार में।
वो आया इस तरह से मेरे हिज़ार में।
Phool gufran
सूना- सूना घर लगे,
सूना- सूना घर लगे,
sushil sarna
एक दिन थी साथ मेरे चांद रातों में।
एक दिन थी साथ मेरे चांद रातों में।
सत्य कुमार प्रेमी
मेरे चेहरे से ना लगा मेरी उम्र का तकाज़ा,
मेरे चेहरे से ना लगा मेरी उम्र का तकाज़ा,
Ravi Betulwala
2874.*पूर्णिका*
2874.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
जैसे ये घर महकाया है वैसे वो आँगन महकाना
जैसे ये घर महकाया है वैसे वो आँगन महकाना
Dr Archana Gupta
ज़िंदगी मोजिज़ा नहीं
ज़िंदगी मोजिज़ा नहीं
Dr fauzia Naseem shad
Loading...