अस्तित्त्व
“समाज का अस्तित्व आपसे और आपका अस्तित्व समाज से हैं ”
जीवन को सफल और सुखी बनाने के लिए अहम होता है – निर्णय…….किंतु फैसला करने के लिए जरूरी है सही और गलत की समझ, जिसे विवेक कहते हैं….विवेक के अभाव में अच्छे या बुरे की पहचान करना मुश्किल हो जाता है….जिसके नतीजे में मिली असफलता जीवन में कलह और अशांति ला सकती है……….किंतु दोस्तों हम सब विवेकशील है……. अपना सही गलत का निर्णय लेने में सक्षम है……. फिर भी हम समाज के वर्ग विशेष से कटते जा रहे हैं…. क्यों?
वर्तमान परिदृश्य में देखने को मिलता है कि अपनी वैचारिक सोच को समाजिक बंधु वर्चस्व की पराकाष्ठा मान लेते हैं…..
मैं कतई विरोध नहीं कर रहा हूँ…. आपकी वैचारिक समझ का….. क्योंकि जिसे जो ठीक लगे वो वह कर सकता है……वैसे अपनी सोच रख सकता है……. किंतु समाज के विभिन्न विचार धारा वाले व्यक्तियों से मात्र वैचारिक मतभेद ही रहे…. मन भेद नहीं……
क्योंकि समाज के प्रत्येक व्यक्ति ने आपको प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से….. फर्श से अर्श तक पहुचाने में अपना सहयोग दिया है…… इस स्थिति में वह आपका प्रतिद्वंदी हो नहीं सकता……
आपका प्रतिद्वंदी आपका विपक्ष हो सकता है…. किंतु समाज नहीं…..
क्योंकि आज आप जो भी हैं… जैसे भी है…….जहाँ भी हो…….समाज की देन हैं…… यदि समाज आपका साथ नहीं देता तो शायद आप इस स्थिति में कभी नहीं पहुंच पाते…….
आप सभी विवेकशील है… अनुभवी हैं…. और मुझसे अधिक ज्ञान आप रखते हैं…….. तब सिर्फ मैं इतना कह सकता हूँ…… आप वैचारिक रूप से….. अपने विपक्ष से नफरत करिए…. किंतु समाज या समाजिक लोगों से नहीं…
क्या आप जानते हैं कि वक्त आने पर सही फैसला न ले पाने की कमजोरी आपके स्वभाव में मौजूद होती हैं….. ?