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1 Apr 2024 · 1 min read

*असीम प्यार

रहे सदा असीम प्यार याद में तुम्हीं रहो।
दया बनी रहे सदैव दिव्य भाव में बहो।
पढ़ो सहर्ष प्रेम ग्रंथ स्नेह गीत गान हो।
सदा दिखे कमल हृदय हँसे खिले सुजान हो।
गुलाब की सुगंध सा अनंत प्यार धार हो।
सुरम्य भव्य दीप्तमान श्रेष्ठ उर विहार हो।
नहीं रहे विचार भाव में कभी दरिद्रता।
पवित्र प्रेम वृत्ति की रहे अतीव शुद्धता।

साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

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