निरक्षरता की भेंट चढ़ती भारत की राजनीति
कागज के पन्नों पर तो देश की 75% आबादी साक्षर हो चुकी है पर यह तथ्य वास्तविकता से कोसों दूर नजर आता है स्वतंत्रता के 70 वर्षों के बाद भी न हम अपने मूल अधिकार को समझ पाए हैं और ना ही मूल कर्तव्य को और हम खुद को साक्षर कहते हैं अपनी राजनीति रोटियां सेकने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा फैलाए गए षड्यंत्र में फंस कर हम खुद ही धर्म जाति और क्षेत्र के नाम पर बँट जाते है। और हम खुद को साक्षर कहते हैं। कभी विपक्षी पार्टियों के बहकावे में आकर हम देश के विकास में बाधक बन जाते हैं तो कभी सरकार कि ना समझी पर उसके साथ खड़े हो जाते हैं ।और हम खुद को साक्षर कहते हैं। कभी राष्ट्रवाद के नाम पर हम निर्दोष का गला घोट देते हैं तो कभी विरोध के नाम पर भारत बंद की घोषणा कर देते हैं और हम खुद को साक्षर कहते हैं।
रोहित राज मिश्रा
इलाहाबाद विश्वविद्यालय