असली गुरु और नकली गुरु में अंतर
सच्चे गुरु व् नकली गुरु में निम्नलिखित अंतर होता है .–
१, सच्चा गुरु दीन भाव से रहता है ,जबकि नकली गुरु अकड़े रहता है .
२, सच्चा गुरु खुद को भगवान् का सेवक समझता है जबकि नकली गुरु खुद को भगवान् का मालिक समझता है.
३, सच्चा गुरु जब सत्संग करता है तो कभी खुद को सर्व-श्रेष्ठ नहीं मानता इसीलिए खुद को एक आम मनुष्य मानते हुए ,अपने श्र्धालुयों में ही गिनता हुआ खुद को ”हम”से सम्बोथित करता है ,जबकि नकली गुरु खुद को सर्व-श्रेष्ठ मानते हुए अपने चेलों को ”तुम ” शब्द से सम्बोथित करता है.
४, सच्चे गुरु के मुख पर एक विशेष प्रकार की सोम्यता ,शांतता , निर्मलता भाब लिए तेज होता है. जबकि नकली गुरु के मुख पर दुर्भावना लिए मलिनता होती है.
५, सच्चा गुरु अपने मन-मस्तिष्क व् इन्द्रीओं को विजय पा चुका होता है . इसीलिए किसी ने क्या दिया ,कितना दिया इससे कोई मतलब नहीं . ,जबकि नकली गुरु को सब मालूम रहता है ,वोह ढोंगी होता है वोह सिर्फ ध्यान-समाधी का नाटक करता है. .
६, सच्चे गुरु के लिए कोई स्त्री – पुरुष, बच्चे में कोई भेद नहीं होता ,सब उसे भगवान् के अंश, ,परमात्मा के अंश, बिछुड़ी हुई आत्माएं लगती है जिसे परस्पर मिलवाना उसे अपना परम कर्तव्य ,अपने जीवन का लक्ष्य लगता है . जबकि नकली गुरु के मन में महिला-पुरुष आदि को किसी भी प्रकार से आडम्बर के नाम से लूटना उसका लक्ष्य या कुचेष्टाएं होती हैं.