अश्लीलता से मिट्टी में मिल रही गरिमा—————-
अश्लीलता से मिट्टी में मिल रही गरिमा—————-
वर दे वीणा वादिनी वर दे’ कविवर निराला की ये पंक्तियां वर्तमान में मां सरस्वती के पूजनोत्सव के परिप्रेक्ष्य में बेमानी लगती है। वैसे तो मां शारदे विद्या व ज्ञान देव कही जाती है और यही कारण है कि विद्यालयों, कोचिंग संस्थानों, छात्रावासों सहित अन्य जगहों पर विद्यार्थीगण धूमधाम से पूजा की व्यवस्था करते हैं। लेकिन आज कल पूजा स्थल पर धड़ल्ले से बज रहे अश्लील गानों ने विद्या की अधिष्ठात्री तथा विद्यार्थियों द्वारा की जा रही पूजा का अर्थ बदल दिया है। चारों ओर पूजा पंडालों में बिना किसी लाज शर्म के अश्लील व फूहड़ गीत बजाये जाते हैं। फलत: महिलाएं चाहकर भी पूजा पंडालों में प्रवेश नहीं करना चाहती है। मूर्ति विसर्जन के समय यह देखने को मिलता है कि युवक शराब के नशे में धूत अश्लील गानों पर डांस कर भद्दा मजाक करते हैं। अश्लील हरकत करने से भी बाज नहीं आते जिसे देखकर लोगों का सिर शर्म से झुक जाता है।
अश्लील नौटंकी प्रस्तुत कर भारतीय सभ्यता, संस्कृति व संस्कार को तार-तार कर दिया। पूजा के नाम पर वाहनों व दुकानदारों से जोर जबरदस्ती चंदा वसूलकर वेशर्मी प्रस्तुत कर रहे युवाओं को रोकने वाला कोई नही है। इस संदर्भ में बुजुर्गो का कहना है कि ज्ञान व विद्या की अधिष्ठात्री मां सरस्वती की पूजा भक्त ज्ञान व विद्या के वरदान के लिए करते हैं। लेकिन इस प्रकार की अश्लीलता का प्रदर्शन कर युवा हमारे संस्कृति पर चोट पहुंचा रहे हैं। अगर यही हाल रही तो आने वाले समय में पूजा व विधान की परंपरा ही समाप्त हो जाएगी।
एक समय था जब छात्रों का एक हिस्सा सरस्वती पूजा का आयोजन करता था , लेकिन समय के साथ पूजा – पाठ का प्रारूप भी बदल गया , अब हरेक चौक – चौराहों पर पूजा होता है बड़े – बड़े पंडालों में बड़ी – बड़ी मूर्तिया साथ मे 200 फीट वाला डीजे बाजा , जैसे लगता है कि पूजा पंडाल के आयोजकों पर भगवान का विशेष धयान हो गया हो । आज से 18 वर्ष पहले जब हम जाते है तो पिता जी कहते है सरस्वती पूजा हमलोग अपने स्कूल में मनाते थे , स्कूल के प्रधानाचार्य और शिक्षक मिलकर पूजा करते थे और उस पूजा में स्कूली बच्चें उनका साथ देते थे , पहले पूजा धार्मिक अनुष्ठान के रूप में विधिवत किया जाता था । लेकिन समय के प्रारूप के साथ पूजा का प्रारूप भी बदलता जा रहा है , कल 16 फरवरी को सरस्वती पूजा है आज् से ही मूर्तियां लोग ले जा रहे है ,
लेकिन आश्चर्यजनक बात तो ये है कि ठेले पर रखी माँ सरस्वती की मूर्ति के समक्ष ही एक बड़ा सा साउंड बॉक्स भी रखा हुआ है बैटरी के साथ और उस साउंड बॉक्स से जो आवाज निकल रही है । उसके बारे में तो पूछिये मत ? विद्या की देवी माँ सरस्वती भी घुटन महसूस कर रही होंगी , सरस्वती मां का पूजन हमलोग विद्या प्राप्त करने के लिए करते है लेकिन ठेलों के सहारे माँ की प्रतिमाएं ले जाने वालों की बुद्धि भ्रष्ट हो गई है उन्हें नहीं मालूम कि माता सरस्वती की पूजन हम क्यो करते है ? सवाल ये खड़ा होता है कि क्या ये लोग जो सरस्वती माता के पूजन में अश्लीलता फैला रहे है । इन्हें समाज क्यो परवरिस दे रहा है , मुह में गुटखा खाये ठेले पर रखी प्रतिमाओं के साथ फूहड़ता से परिपूर्ण गीत , हमारी आस्थाओं पर एक गहरा घात है आखिर कौन निकलेगा हमे इस दलदल से ? और कैसे निकलेंगे हम ? भारतीय संस्कृति और सभ्यता को तार – तार करने वाले ऐसे लोगो के बारे में हम क्या कहेंगे ? सवाल ये है कि पूजा के नाम पर हम समाज में अश्लीलता को परोसने वालो को तवज्जो क्यो दे रहे , ये पूजा है या फिर पूजा के नाम पर अश्लील गीतों का मेला ? समाज मे ऐसे लोगो को प्रतिकार जरूरी है जो सामाजिक ढांचों व प्रारूपों को तार – तार कर अपने उत्सवों को मनावे , हमारे भारतीय संस्कृति में ऐसे पूजा का कोई महत्व नही .
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