अश्रुनाद मुक्तक संग्रह षष्ठम सर्ग श्रृंगार
…… अश्रुनाद मुक्तक संग्रह ……
…… षष्टम सर्ग ……
…… श्रृंगार …..
मन मोहन रूप सजाया
अनुपमा कामिनी काया
अन्तर – दर्पण में नर्तन
करती आनन्दित माया
मञ्जुलमय रूप सजाया
कञ्चनमय कामिनि काया
मन के दर्पण में देखा
अनुपम प्रिय रूप समाया
आकण्ठ मदिर भर प्याले
जीवन में भर – भर डाले
सुस्मृति अधरों से पीते
अञ्जुलि भरकर मतवाले
जब युगल विकल मिल जाते
रुनझुन अन्तस में गाते
युग – युग के प्रेम मिलन को
दो प्राणी मधुर बनाते
ओझल न हुई नयनावृत
मन से मञ्जुलमय मूरत
इठलाती सी बलखाती
प्रिय ! मोहनि सुन्दर सूरत
रति- मदन सुखद हिय डेरा
लट श्यामल कोमल फेरा
मृदु चन्द्रानन आबन्धन
वर्तुल नयनों ने घेरा
अन्तस में उनको छू लूँ
सुधियों के सँग – सँग झूलूँ
यह सतत असम्भव होता
जीवन में प्रिय को भूलूँ
मृदु – वक्षस्थल पर ऐसे
भुज – लता लिपटती वैसे
जन्मों की प्रेम – पिपासा
चिर – तृप्ति पा रही जैसे
निर्मल मन पा जग न्यारा
मधुरिम ललाम अभिसारा
नित नवल उमड़्गित जीवन
कोमलतम छुवन तुम्हारा
भरती उमड़्ग यौवनता
शशि – मुख प्रदीप्य पूनमता
उठती तरड़्ग नव मन में
छूकर तन की कोमलता
स्वर्णिम सुप्रात अरुणाई
अभिलाष हृदय अँगड़ाई
विश्वाञ्चल के अन्तर में
स्वप्निल प्रभाष तरुणाई
रक्तिम ललाट लट काली
अधरों में शुक की लाली
रक्ताभ करों ने रच दी
अनुपम प्रसाद की थाली
रँग – रञ्जित व्यथा पुरानी
जग – भ्रमर कृत्य मनमानी
चिर – काल ग्रसित जीवन में
कलियों की करुण कहानी
लट श्याम ललित लहराये
चन्द्रानन नयन लजाये
भर नव उमड़्ग हृदयड़्गम
जीवन मधुरस छलकाये
नित अथक श्रमिक बन जाता
सुमनों से मधुरस लाता
दुर्भाग्य शुक्ल में छिपकर
सञ्चित मधु – राशि चुराता
कञ्चन कामिनि मृदु काया
मद लोभ मोह हिय छाया
सतरड़्ग क्षणिक जीवन में
भ्रामक जगती की माया
अभिलाषित – दृग मिल जायें
नयनाभिराम मुस्कायें
शुचि नव उमड़्ग भर मन में
फिर मौन मुखर हो गायें
रजनी आँचल लहराये
चन्द्रिका सुभग हर्षाये
चाँदनी मचल शशि – मुख के
घूँघट – घन में छिप जाये
मधुरिम यौवन मतवाला
स्मृतियों की पीकर हाला
जीवन हो रञ्जित गुञ्जित
रड़्गित यह जग मधुशाला
कामिनि – मनोज मृदु – बानी
जीवन की मधुर कहानी
प्रतिबिम्ब हृदय प्रतिभासित
रँग – रञ्जित व्यथा सुहानी
सुरभित किसलित यौवन में
मधुरस था जब मधुबन में
अवशेष खोजता फिरता
मधुरिम सुस्मृति जीवन में
सत्कर्मी दम्भ न भरते
दुर्दिन से कभी न डरते
पुरुषार्थ- पथिक बन जग में
किञ्चित दुष्कृत्य न करते
उन्मत्त मधुर थिर छाया
रति – मदन नृत्य चिर माया
उल्लसित विश्व- अञ्चल में
पावन बसन्त फिर आया
भर मदिर नयन पुलकाती
इठलाती सी बलखाती
फिर मेरे हृदयाँगन में
सुस्मृति मधुरिम छा जाती
पतझड़ बसन्त पा जाये
मधुपों का मन ललचाये
सुमनों की सञ्चित निधि का
मकरन्द लूटने आये
ऋतुराज क्रमिक फिर आया
चिरकाल मदन – रति माया
सुमनों ने लघु जीवन में
सौरभ पराग बिखराया
स्वपनिल मधुऋतु का मिलना
नव जलज उमड़्गित खिलना
जैसे हो ताल – हृदय में
अभिलाषित उर्मि मचलना
जीवन की मधुरिम रातें
रस घोल रहीं हिय बातें
नयनों की चपल सजलता
अब सुधियों की बरसातें
शीतल अञ्चल अरुणाई
भर नव उमड़्ग तरुणाई
फिरता उन्मत्त गगन में
यौवन लेता अँगड़ाई
चञ्चल दृग कञ्चन काया
रक्तिम कपोल मद माया
यौवन अनन्त रँग – रञ्जित
मन मिलने को अकुलाया
हिय – प्रेमिल पास बुलाता
मन रुनझुन गुन – गुन गाता
अभिलाषित जीवन पथ पर
जीने की आस जगाता
अल्हड़ भ्रू – कुञ्चित वाली
सुस्मित ललाट मृदु लाली
ओझल न हुई प्रेमाकृति
प्रिय ! मूरत भोली – भाली
सुस्मित ललाम मृदु बानी
मोहनि प्रतिमूर्ति सुहानी
मादक नयनों ने रच दी
हर युग में प्रेम कहानी
मधुकर उन्माद न लाता
मकरन्द नहीं यदि पाता
पतझड़ न भूमिका रचता
फिर कैसे ऋतु – पति आता
सञ्जीवी मधुरिम वाणी
मञ्जुलमय मूर्ति सुहानी
अभिलाषित हिय रच देते
जगती में प्रेम कहानी
रक्ताभ अधर सकुचाये
तन्द्रिल मदाक्षि पुलकाये
रति – मदन केलिरत नर्तन
तन सुभग स्वेद छलकाये
क्षिति-क्षितिज मदनमय सड़्गम
भव – भोग समग्र समागम
भुज – वल्लरि प्रिय ! अवगुण्ठन
उत्कर्ष युग्म हृदयड़्गम
आकुञ्चित – भ्रू अरुणाई
कड़्गन – खन तन- तरुणाई
कृश – अड़्गी किसलित बाहें
कामिनि कञ्चन करुणाई
कञ्चन कामिनि कृश – काया
श्रृड़्गारित सुभग सजाया
आवरण लाज – आभूषण
चञ्चल नयनों में माया
कटि कुच नितम्ब तरुणाये
लट कुञ्चित घन घिर आये
वर्तुल – दृग मधु केकारव
कम्पित कपोल अरुणाये
आकर्षित हो द्वय प्राणी
अस्फुट मनोज – रति वाणी
अभिलाषित हृदय जगत में
रचते शुचि प्रेम – कहानी
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