Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
4 Sep 2018 · 3 min read

अश्रुनाद मुक्तक संग्रह पञ्चम सर्ग “हृदय”

…. अश्रुनाद मुक्तक संग्रह ….
…. पञ्चम सर्ग ….
…. हृदय ….

युग – युग से साथ घनेरे
सुख – दुख दोनों ही घेरे
इस करुणा कलित हृदय में
बस रहो निरन्तर मेरे

मधुरिम मृदु रूप सजाया
तन सुभग कामिनी काया
आनन्दित हिय दर्पण में
आलोकित पुलकित माया

परिहास किया जीवन का
निर्मम निरीह निर्धन का
मैं विकल अकिञ्चन फिरता
सन्ताप छिपाये मन का

हिय उर्मि उमंगित आती
उठ-उठकर गिर-गिर जाती
अनुपम नव साहस भरकर
अन्तस में विगुल बजाती

कौतूहल हृदय – भुवन में
दुर्गम सर्पिल पथ वन में
आह्लादित कोलाहल हो
सुख- दुख रञ्जित जीवन में

सदियों से साथ हैं मेरे
सुख- दुःख रञ्जन के घेरे
इस निर्दय विश्व सदन में
तुम ! करो हृदय में डेरे

स्वर्णिम प्रभात मुस्काता
रवि रश्मि- रथी सँग आता
मेरे हिय – विश्वाञ्चल के
तम में स्मृति- दीप जलाता

दुर्गम जीवन के पथ पर
गिरि भेद रश्मि निज रथ पर
प्रमुदित नव सुखद सवेरा
अभिलाषित हिय में तत्पर

रवि तेज प्रखर बिखराये
जब ज्येष्ठ तपन बिलखाये
तब सुखद झलक पा प्रिय की
तन – मन शीतल हो जाये

अन्तस अनन्त अभिलाषा
अगणित मन में जिज्ञासा
कर दो तुम शून्य हृदय की
जन्मों से तृप्त पिपासा

उन्मुख मिलते द्वय प्राणी
अस्फुट अधरों की वाणी
फिर युगल हृदय रच देते
जगती में प्रेम – कहानी

नीलाम्बर सुखद प्रसारे
धानी अञ्चल अभिसारे
आमन्त्रण हृदयाबन्धन
अभिलाषित नयन निहारे

सुख-दुख रँग-रञ्जित घेरे
हिय में सन्ताप घनेरे
जीवन के दुर्गम पथ पर
बन जाओ सहचर मेरे

सुधियों से अन्तस रोता
बन मोती , दृग-जल धोता
कविता भावों में प्रमुदित
हिय- माला कण्ठ सँजोता

सुमनों सी सुरभि सुफलता
स्मृतियों से हृदय विकलता
उद्भव हो मानस – रचना
मृदु भावों की चञ्चलता

प्रज्ज्वलित प्रेम लौ – धारा
जगती – उर सत अभिसारा
हिय – दर्पण में प्रतिबिम्बित
अगणित प्रिय ! रूप तुम्हारा

शुचि-प्रीति सरित सम बहती
हृदयों में अविरल रहती
रँग-रञ्जित चिर-चिन्हों पर
चेतनता सुख- दुख सहती

स्वर्णिम आभासित होना
स्वर्णिम आबन्ध सलोना
जीवन के मधुर पलों का
हिय-मोती मञ्जु पिरोना

अनुपम सुर – वाद्य सजाये
मधुरिम सड़्गीत सुनाये
मञ्जुलमय मूर्ति हृदय में
श्रद्धावत नयन झुकाये

हिय- प्रेम- ज्योतिरत ज्वाला
लेकर सुधि – मञ्जुल माला
प्रिय ! दर्श अमिय पा लेता
अर्पण जीवन मृदु वाला

जग सतत प्रेम अनुबन्धन
प्रिय का कोमल अवगुण्ठन
स्वच्छन्द हृदय – अम्बर में
जीवन का सत अवलम्बन

सुधियों के दीप जलाये
हृदयाञ्चल मञ्जु सजाये
दुर्भाग्य अकिञ्चित जीवन
हिय विरह – अनल गहराये

पोथी पढ़ भुवन सजाये
फिर विपुल विशारद पाये
स्वर्णिम आलोक हृदय हो
जब अन्तर्पट खुल जाये

रुनझुन वाणी मृदु बोलें
मधुरस जीवन में घोलें
भर नव उमंग यौवनता
स्मृतियाँ अब नयन भिगो लें

जीवन – पथ सुगम बनाये
उन्नत शिखरों तक जाये
अन्तस घट के पट खोले
जब ज्ञान – छटा हिय छाये

हिम-गिरि नत अनुपालन के
अन्तर भू – ज्वाल मिलन के
अवशेष चिन्ह हैं चित्रित
उस ज्वालामयी जलन के

हिय असह्य बेदना छाये
आघात – परिधि फैलाये
मेरी करुणित प्रतिध्वनि भी
फिर लौट क्षितिज से आये

हिय परम भक्तिमय होता
तब स्वत्व आत्मबल होता
भूचाल प्रलय विपदा में
भय किञ्चित व्याप्त न होता

दिन – प्रात भोग – रत जीता
सत्कर्म – हृदय – घट रीता
सन्ध्या में जीवन क्रम के
अब जोड़ – तोड़ कर बीता

तृण – तृण चुन नीड़ बनाया
स्वप्निल संसार सजाया
जीवन सन्तति के क्रम में
वात्सल्य सुखद हिय छाया

मृदु भाष्य मधुर रस घोलें
अन्तर – सुप्रेम – पट खोलें
जीवन पथ सुगम सरस हो
हिय सोच समझ कर बोलें

– – – – – – –

Language: Hindi
480 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
शरद पूर्णिमा पर्व है,
शरद पूर्णिमा पर्व है,
Satish Srijan
मोलभाव
मोलभाव
Dr. Pradeep Kumar Sharma
स्वतंत्रता और सीमाएँ - भाग 04 Desert Fellow Rakesh Yadav
स्वतंत्रता और सीमाएँ - भाग 04 Desert Fellow Rakesh Yadav
Desert fellow Rakesh
आज यूँ ही कुछ सादगी लिख रही हूँ,
आज यूँ ही कुछ सादगी लिख रही हूँ,
Swara Kumari arya
💐Prodigy Love-46💐
💐Prodigy Love-46💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
रुलाई
रुलाई
Bodhisatva kastooriya
कहां से कहां आ गए हम....
कहां से कहां आ गए हम....
Srishty Bansal
The wrong partner in your life will teach you that you can d
The wrong partner in your life will teach you that you can d
पूर्वार्थ
**** फागुन के दिन आ गईल ****
**** फागुन के दिन आ गईल ****
Chunnu Lal Gupta
खुदा ने ये कैसा खेल रचाया है ,
खुदा ने ये कैसा खेल रचाया है ,
Sukoon
Mai deewana ho hi gya
Mai deewana ho hi gya
Swami Ganganiya
■ बड़ा सवाल ■
■ बड़ा सवाल ■
*Author प्रणय प्रभात*
"लोभ"
Dr. Kishan tandon kranti
दुखद अंत 🐘
दुखद अंत 🐘
Rajni kapoor
*गाओ हर्ष विभोर हो, आया फागुन माह (कुंडलिया)
*गाओ हर्ष विभोर हो, आया फागुन माह (कुंडलिया)
Ravi Prakash
ज्ञात हो
ज्ञात हो
Dr fauzia Naseem shad
कभी फुरसत मिले तो पिण्डवाड़ा तुम आवो
कभी फुरसत मिले तो पिण्डवाड़ा तुम आवो
gurudeenverma198
आ गई रंग रंगीली, पंचमी आ गई रंग रंगीली
आ गई रंग रंगीली, पंचमी आ गई रंग रंगीली
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
उगते हुए सूरज और ढलते हुए सूरज मैं अंतर सिर्फ समय का होता है
उगते हुए सूरज और ढलते हुए सूरज मैं अंतर सिर्फ समय का होता है
Annu Gurjar
*जन्म या बचपन में दाई मां या दाया,या माता पिता की छत्र छाया
*जन्म या बचपन में दाई मां या दाया,या माता पिता की छत्र छाया
Shashi kala vyas
जिन्दगी के रंग
जिन्दगी के रंग
Santosh Shrivastava
देखिए आईपीएल एक वह बिजनेस है
देखिए आईपीएल एक वह बिजनेस है
शेखर सिंह
प्रेम का दरबार
प्रेम का दरबार
Dr.Priya Soni Khare
भले ई फूल बा करिया
भले ई फूल बा करिया
आकाश महेशपुरी
सामाजिक क्रांति
सामाजिक क्रांति
Shekhar Chandra Mitra
🍁
🍁
Amulyaa Ratan
2488.पूर्णिका
2488.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
दिल के रिश्ते
दिल के रिश्ते
Surinder blackpen
कहमुकरी
कहमुकरी
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
*छंद--भुजंग प्रयात
*छंद--भुजंग प्रयात
Poonam gupta
Loading...