अश्क पीकर आइए अब खिलखिलाएँ
रहें आंँसू भरी आंँखें, निकलता हो तुम्हारा दम।
नहीं मतलब सियासत को, तुम्हे क्या दर्द है क्या गम।
सड़क पर चिप्पियाँ तुम देखकर, हैरान मत होना,
चुनावी साल है भाई, लगाएंगे सभी मरहम।
इंजन लेकर रात भर, भ्रमर किया हुजूर।
गोरखपुर, बैतालपुर, कुसुमी, गया जरूर।
देवरिया जारी हुआ, स्पेयर का पास-
भटनी में चटनी मिला, खाने को भरपूर।
शान्ति दूत के हाथ में, है अफगानिस्तान।
मालिक अब अल्लाह् है, आफत में है जान।
जगजाहिर है क्रूरता, खून-खराबा आम-
तालिबानिये खौफ से, जनमानस हलकान।
अहंकार है मन मस्तक में, ज्ञान पूंज भर जाओ।
मैं अबोध बालक अज्ञानी, सत्य राह दिखलाओ।
जीवन नैया उलझ गयी है, उल्टी लहरों में-
अंधकार हर ओर हमारे, प्रभु जगमग कर जाओ।
जुदाई का जहर कोई कहो, कैसे सहेगा जी।
बिछड़ कर यार से अपने भला, कैसे रहेगा जी।
बनाकर रोशनाई आंसुओं को, दर्द लिख देता-
मगर संकोच है मन में कि कोई, क्या कहेगा जी।
कभी बिस्किट,कभी भुजिया,कभी नमकीन लेता हूँ।
सदा ड्यूटी से पहले गुटका खैनी कीन लेता हूँ।
कभी सोने नहीं देती हैं जिम्मेदारियाँ मुझको-
हमेशा नींद से नैनों को अपने छीन लेता हूँ।
दर्द गम अपना किसी से क्यों बताएँ।
बिन लड़े हम हार कर क्यों बैठ जाएँ।
शूल है यदि जिंदगी तो फूल भी है-
अश्क पीकर आइए अब खिलखिलाएंँ।
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य