“अशान्त मन ,
“अशान्त मन ,
विचलित् भँवरे सा l
विचरण करता एक पुष्प से दूसरे पुष्प पर ,
एक पड़ाव से दूसरे पड़ाव ,
एक विचार से दूसरे विचार l
नहीं मिलती उसे शांति ,
नहीं मिलता उसे सारथी l
करता कर्म अपने ,
रखता भ्रम् अपने l
की एक रोज़ सब अपना होगा ,
सच सपना भी होगा l
होगी विजय की प्राप्ति ,
मन को मिलेगी शांति l
शांति शनै शनै मिलेगी
महाकाल कृपा पुनशच मिलेगी l”
नीरज़ कुमार सोनी
“जय श्री महाकाल”