*अविश्वसनीय*
लेखक डॉ अरूण कुमार शास्त्री
विषय अविश्वसनीय
शीर्षक तुम क्या सोचते हो
विधा स्वच्छंद कविता
जो न देखा कभी सुना भी नहीं कैसे करें भरोसा?
तुमको नहीं होगा विश्वास तभी कहते हो अविश्वसनीय।
तुम क्या सोचते हो होता होगा औरों को तभी शांत मन से विस्मृत स्मृतियां भुलाए ?
लेकिन यही कारण है प्रश्न चिन्ह लगे रहते उन भावों पर जो न कभी खयाल में भी आए ।
सोच से इत्तफाक रखने वाले पलों को समर्पित उपलब्ध
सपन कहाँ हो पाते पूरे ।
अविश्वसनीय, मगर कभी – कभी सत्य बन कर सामने आ जाते मृग मरीचिका से किंचित अधूरे ।
तुमको करना पड़ेगा भरोसा मानो या न मानो क्योंकि मैं अकेला ही नहीं इस जगत में जो हैं अनगिनत सवालों से घिरे।
हमारा मानस दिखा देता बहुत सी चीजें अनायास निकलता मन से अद्भुत अविश्वसनीय ये तो है सपन से परे ।
सृष्टि कह लो दृष्टि कह लो या अपनी बुद्धि समझ या फिर ज्ञान विज्ञान कुछ तो है जिसे हम मानते अविश्वसनीय ।
लेकिन सच्चा धर्मनिष्ठ प्रभु की रचना ब्रह्माण्ड से ही जनित और उपार्जित अतुलनीय।
जो न देखा कभी सुना भी नहीं कैसे करें भरोसा?
तुमको नहीं होगा विश्वास तभी कहते हो अविश्वसनीय।
चलो मैं ले चलता तुमको अपने पटल के सिद्ध ज्ञानी समीक्षकों के पास।
वे जानते अन्यान्य विषयों को लेकिन कभी न करते दंभ इसीलिए वे सब हैं अतिविशिष्ट और खास ।
विश्वास और अविश्वास दो ही किनारे बीच में खड़ा संशय जो पैदा कर सकता प्रश्न।
और इन्ही में डोलता मानव जीवन लिए अपनी छोटी सी उम्र भ्रमित मति और चकित मन।
जो न देखा कभी सुना भी नहीं कैसे करें भरोसा?
तुमको नहीं होगा विश्वास तभी कहते हो अविश्वसनीय।
सोच से इत्तफाक रखने वाले पलों को समर्पित उपलब्ध
सपन कहाँ हो पाते पूरे ।
अविश्वसनीय, मगर कभी – कभी सत्य बन कर सामने आ जाते मृग मरीचिका से किंचित अधूरे ।