अवावील की तरह
अवावील की तरह
डरती हैं तमन्नाएँ अबाबील की तरह।
हालात झपटते हैं किसी चील की तरह ॥
हो रात अमावस की अंधेरा हो घनेरा ।
तो याद तुम्हारी है किसी एक कंडील की तरह।।
कंकड़ की तरह छेड़ता हूँ मैं तुझे गिरकर ।
ख़ामोश तू रहती है किसी झील की तरह ।।
महफ़िल में सुना देते हो अहसान तुम करके ।
सीने में खटकता है किसी कील की तरह ॥
फिरता हूँ एक दरख्वास्त सा पीछे मैं तुम्हारे ।
मिलते नहीं हो साहबों और सील की तरह ॥