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7 May 2019 · 1 min read

अवसर आता वोट का, बारम्बार न भाय ।

अवसर आता वोट का,बारम्बार न भाय।
सांझ सकारे रात दिन, रहिये ध्येय बनाय।
रहिये ध्येय बनाय,वोट इक इक है थाती।
प्रजातंत्र का कर्ज, चुकायें हम इस भांति ।
कहें प्रेम कविराय, काम इतना तो अब कर।
वोट डालिए सुबह,न चूकें फिर ये अवसर ।
डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव

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Books from डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
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