अवसर आता वोट का, बारम्बार न भाय ।
अवसर आता वोट का,बारम्बार न भाय।
सांझ सकारे रात दिन, रहिये ध्येय बनाय।
रहिये ध्येय बनाय,वोट इक इक है थाती।
प्रजातंत्र का कर्ज, चुकायें हम इस भांति ।
कहें प्रेम कविराय, काम इतना तो अब कर।
वोट डालिए सुबह,न चूकें फिर ये अवसर ।
डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव