अवधी दोहे
१-
तुलसी,सूर, कबीर जी, मलिक अउर रसखान।
अवधिन मा पोथी लिखिन, औ पाइन सम्मान।।
२-
मुलिक वहै बोली हिंयाँ, पावै ना सम्मान।
अपनेन घर मा पाय रही, अपनेन से अपमान।।
३-
अवधी करै अपील ई, सुनौ तनिक सरकार।
अपने घर मा नाहिं अब, सहिबै हम दुत्कार।।
४-
ठोस कदम उठाव तू, होय हमर उत्थान।
नहि तौ मिट जाई हियंस, अवधिक नाव निसान।।
५-
अवध नगर के भूमि पर, अवधिन कै अपमानु।
जाने केहिया पाइ हौ, ई बोली सम्मानु।।
६-
जउन पढ़िन यक साल मा, लड़िके सब गें भूल।
गाँव-गाँव ठेका खुले, बन्द रहैं इस्कूल।।
७-
छुटि जैहैं सब कुछ हिंयें, कुछुय न साथे जाय।
फिर काहे का सब जने, मरे जात हौ भाय।।
८-
अवधी अइसन मीठ है, जइसन होतै खीर।
मुलिक क्षेत्र मा अपनेन ही, सहै अनगिनत पीर।।
९-
साथ न जाई आपके, प्रीतम एक छदाम।
नेकी-बदी साथे चली, करौ पुन्न कै काम।।
१०-
अवधी मधुरस से भरी, प्यारी इसकी बोल।
जैसै यहिके बोल से, मिसरी जाए घोल।।
प्रीतम श्रावस्तवी