अवधी गीत
अवधी बहार
पत्नी ने पति से कहा
#छोड़ि के हमका यहर-वहर तू, काहे जिव भरमावत हौ।
तनिक बताऔ हमसे काहे, नैना नाहि लड़ावत हौ।।
हम हैं सुंदर सुघर सलोनी, बारी उमर है लरकैंया।
नैन कटीले, होठ रसीले, काहे समझ न पावत हौ।।
छोड़ि के घर कै सोरहौ व्यंजन, होटलेक खाना नीक कहौ।
बासमती जब तोहरे घर मा, अंकडा पर मुँह बावत हौ।।
अंग्रेजी फैसन चमक दमक ई, घरिन भरे कै खेला है।
कोई तोहरे काम न अइहैं, नाहक राल चुवावत हौ।।
गद्दर महुआ जेस ई देहीं, महर महर कस महकत है।
छोड़ जलेबी रस की भरी तू, खुरमस जिव फुसलावत हौ।।
बप्पक भेजव खेते मइहे, उनहिन खेत रखावइँ अब।
घर कै नाहक छोड़ मसेहरी, खेतेम खाट बिछावत हौ।।
एक बेर तौ नजर उठय कै, हमका देखउ तू प्रीतम।
दूरिन से बस ना जाने तू, काहे मुँह बिचकावत हौ।।
प्रीतम श्रावस्तवी