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6 Aug 2022 · 1 min read

अवतरण दिवस

************ अवतरण दिवस ***********
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इस बार फिर से अवतरण दिवस आया है,
फिर से वही बातें नया कुछ नहीं लाया है।

कोई न समझे पीर – धीर मन की जग में,
ताली बजाकर कुछ जुलूस सा निकल पाया है।

कोई गिला – शिकवा रहा न जीवन तुम से,
मकसद जहां में क्या समझ नहीं आया है।

खुशियों भरी महफ़िल सजी हुई आंगन में,
दिल का करीबी भी नजर नहीं आया है।

इक ओर जीवन का गया वर्ष मनसीरत,
कोई समय की रफ्तार को पकड़ पाया है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

Language: Hindi
156 Views
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