अल्लादीन का चिराग़
ऊपर से सख्त है
लेकिन पत्थर नहीं है
फिर भी तुम्हें उसकी
जाने क्यों कद्र नहीं है
वो तो जान देता है तुम पर
बस तुमसे कह नहीं पाता
तुम ही हो संसार उसका
खुद के लिए जी नहीं पाता
न जाओ उसके गुस्से पर
वो तो दिखाने के लिए है बस
छुपा है उसके दिल में प्यार
एक बार देखने कोशिश करो बस
थोड़ा लेट हो जाते हो
घर पहुंचने में जब तुम
क्यों उसकी धड़कने बढ़ जाती है
क्या सोचते हो कभी तुम
मांगते हो कुछ भी उससे तुम
पूरी करता है न हर मांग तुम्हारी
खुद की इच्छाओं को मारकर
जरूरतें पूरी करता है बस हमारी
याद है उसका वो बचपन का कोट
जो आज भी कभी कभी पहनते है वो
क्यों नहीं बदला अभी तक उन्होंने कोट
सैलरी तो अच्छी खासी ले रहे हैं अभी भी वो
हमारे तो यार दोस्त है बहुत
उसका संसार तो हम ही है बस
करता है वो त्याग जीवनभर
त्याग का दूसरा नाम पिता है बस
पिता तो अल्लादीन का चिराग है
जो मांगते हैं उनसे, तुरंत मिल जाता है
है यही जीवन की सच्चाई यारों,
पिता के बिना जीवन हिल जाता है
पिता तो कवच होता है हमारा
कभी घायल होने नहीं देता हमको
जानता है नहीं रहेगा कवच हमेशा
थोड़ी सख्ती करके, कवच के
बिना लड़ने को तैयार करता है हमको।