अल्फ़ाजी
मर मिटने की , बात लफ़्ज़ों की,
वो करती नहीं , करने देती नहीं,
नज़रें मिलाती नहीं, ये आखें वो,
होता है जो उसकी हमसफर नहीं.
मित न सके वो अल्फ़ाज़
जो लिख गये तबाही
तबाही के मंज़र लिख गये
मानवता में भेद कर
अभेद्य दुर्ग बना,, कर,
प्रवेश वर्जित है लिख गये,
देख सके ना जो उजाले,
सूरज से वंचित रह गये,
मोहक चंद्रमा सी शीतल रोशनी,
अठखेलियाँ करती शीप
एक बूंद पानी से मोती उगलती,
बेवफा नहीं सूरज
वफा करती नहीं चांदनी देखों,
प्रकृति की समृद्धि .
जिसने चाहा वो समृद्ध है,
पूर्ण है,, अपनी कलाओ में,,,
वंचित नहीं पहरेदार .ः
मालिक रह गये वंचित,,
जो मिला है,, उसकी पहचान नहीं,
कर लिया,, इकट्ठा उसे ..
जो किसी का हुआ नहीं,,