अल्फ़ाज़ हमारे”
अल्फ़ाज़ हमारे”
पहले अल्फ़ाज़ हमारे उनके दिल में उतर जाते थे ग़ालिब।
अब अल्फ़ाज़ हमारे उनके दिल से उतर जाते है।
अल्फ़ाज़ वहीं है और सुनने वाले भी वहीं है ग़ालिब।
बस समय के साथ अल्फ़ाज़ के मायने बदल जाते है ।
………..✍️योगेन्द्र चतुर्वेदी