अर्धांगिनी श्री कृष्ण की
प्रेम तो मैने भी किया
प्रेम से बढ़कर किया है
चेतना और संवेदना में
हर ह्रदयस्पंदन में जीया है
प्रेम है अमृत सत्य है
मैने भी यह अमृत पीया है
श्री कृष्ण के संग राधा क्यों
जब श्री राम के संग सिया है
निश्चय नही हो सकता यह
आशा और निराशा क्या है
या की यह उमंग वेग कैसा
प्रेम में यह अभिलाषा क्या है
कौन देगा मुझे इसका उत्तर
तनहा प्रेम की परिभाषा क्या है
अगर उचित नही प्रश्न मेरा
बतलाओ प्रेम की भाषा क्या है
श्री कृष्ण का नाम मेरा कीर्तन
मैं जीवन संगिनी श्री कृष्ण की
श्री कृष्ण दर्शन ही मेरा दर्पण
मैं धर्म वामांगी श्री कृष्ण की
श्री कृष्ण का धाम मेरा अर्जन
मैं प्रिया रुक्मिणी श्री कृष्ण की
मेरा सर्वस्व श्री कृष्ण को अर्पण
मैं सदा अर्धांगिनी श्री कृष्ण की