……….अर्थ हीन……
……….अर्थ हीन……
एक स्त्री के लिए
अच्छा घर,अच्छा पति
अच्छे बच्चे, सास ससुर
और ,एक अच्छी खासी आमदनी भी
तब,किसी काम की नही होती
जब, उस पर
लगा हो बंदिशों का पहरा
किसी से भी बात न करने की मनाही
उठती हुई शक की नजरों के साथ
हर बात पर व्यंग तानाकशी….
नर्क सा हो जाता है वह जीवन
जहां स्त्री ही नही
बच्चे भी विकसित नही हो पाते….
संस्कार के सारे मायने
दब जाते हैं,सिद्धांतों की शिला तले
जबरन मुस्कराती हंसती
खेलती बच्चों के साथ भी उसकी
होती रहती है मौत तिल तिल…
घर के मुखिया पुरुष ही नही
बुजुर्ग महिलाओं की तानाशाही भी
वधू को जीने नही देती,…
फिर भी वह बाध्य रहती है
जीने के लिए ,क्योंकि
उसके लिए वही उसका परिवार है!!!!
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मोहन तिवारी,मुंबई