अर्थांगनी
सप्तपदी के फेरे लेते वक्त जिसके साथ जीने मरने कि कसम खाती है, वह पत्नी अपना पूरा जीवन अपने पति की खुशीयो के लिए समर्पित कर देती है। हवन कुंड़ की पवित्र अग्नि व सभी देवो की साक्षी में अपने पति के हर एक वचन को पूरा करना अपना धर्म मानती है। विवाह के पश्चात स्त्री अपने से ज्यादा अपने पति की खुशीयो के लिए जीती है। ऐसी त्याग की मूर्त केवल एक पत्नी ही हो सकती है। जो पत्नी अपने पतिव्रतता का पालन हर परिस्थिति में करती है, वास्तव में वही आदर्श पत्नी कहलाने योग्य है।
हमारे वेद शास्त्रो में तो पत्नी को अर्थांगनी का दर्जा दिया हुआ है। अर्थांगनी का अर्थ होता है पुरूष के शरीर का आधा भाग। जिसके बिना गृहस्थ जीवन की कल्पना भी नही की जा सकती। पुरुष के बिना स्त्री और स्त्री के बिना पुरूष अधूरा है। पुरुष के शरीर का आधा भाग उसकी पत्नी को माना जाता है। जो स्त्री अपने पति के प्रत्येक सुख-दु:ख, अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थिति में उसका साथ उसकी आत्मा की तरह दे, वही आदर्श पत्नी कहलाती है। जो किसी भी परिस्थिति में अपने पति का हाथ कभी नही छोड़ती। अपने पति के उच्चारित वचन को ईश्वर की वाणी के तुल्य मानती है, जिसे वह किसी भी भांती पूरा कर के ही दम लेती है। एक आदर्श पत्नी अपना प्रत्येक काम अपने पति की इच्छानुरुप करती है, ऐसा कोई भी कार्य नही करती, जिससे पति के हदय को ठेस पहुंचे। पति के सन्मुख प्रत्येक वचन को सोच विचार कर उच्चारण करती है, जिससे पति का हदय प्रसन्न हो।
भारतीय संस्कृति में ऐसे गुणो से युक्त स्त्री ही एक आदर्श पत्नी कहलाती है। एक आदर्श पत्नी के सतीत्व के आगे तो तीनो देव भी नतमस्तक हो गए, जो सती अनसूया की परीक्षा लेने आऐ थे। एक आदर्श पत्नी के लिए तो उसका पति ही सर्वेसर्वा होता है, जिसके लिए वह यमराज तक से भीड़ कर अपने पति के प्राण वापस लेकर आ गई।
एक आदर्श पत्नी जब अपने पतिव्रतता का पालन जब पूर्ण निष्ठा से करे तो प्रकृति भी अपने को गौण समझने लगती है। गंर पत्नी बनाने मे आऐ तो एक कुटिया को भी महल बना दे, चाहे तो महल को भी खंड़र। एक पत्नी के सतीत्व में इतनी ताकत होती है, वह हर असंभव कार्य को भी संभव करार दे।
इसलिए कहते है:-
सास तीर्थ, ससुर तीर्थ
तीर्थ साला, साली है।
दूनिया के सब तीर्थ झूठे,
चारो धाम घरवाली है॥
आपका अपना
लक्की सिंह चौहान
ठि.:-बनेड़ा (राजपुर)