अर्थहीन हो गई पंक्तियां कविताओं में धार कहां है।
अर्थहीन हो गई पंक्तियां कविताओं में धार कहां है।
जनभावना नही दिखती है जनता का आधार कहां है।।
कवि दरबारी बन बैठे जन सरोकर अब रहा नहीं।
कविताएं अश्लील हो गई कविता में श्रृंगार कहां है।।
“कश्यप”