अर्थहीन कहानियों को नकारता दर्शक वर्ग
शीर्षक – ” अर्थहीन कहानियों को नकारता दर्शक वर्ग ” –
आधुनिक युग के दर्शक का सिनेमा के प्रति दृष्टिकोण शनैः शनैः परिवर्तित होता जा रहा है , वह परिवर्तनशील सिनेमा का पक्षधर बनता जा रहा है । सिनेमा का रूपहला पर्दा हो या
ओटीटी की रंगीन दुनिया ,दोनों ही स्थानों पर दर्शक कुछ अर्थपूर्ण कहानियां देखने के इच्छुक हैं जो सामाजिक संदेश देने के साथ साथ ,अश्लीलता का बिगुल न बजाये । सिनेमा के साथ दर्शक मुख्यधारा से जुड़ना चाहते हैं परंतु अर्थहीन कहानियां एवं किरदारों का ख़ालिस नकलीपन ,दर्शकों को हताश कर रहा है । हालिया रिलीज़ हुई फ़िल्म ” द कश्मीर फ़ाइल्स ” कम बजट में निर्मित वो सच्चा दस्तावेज है जिसे संपूर्ण देश में दर्शकों से सराहना एवं सहयोग दोनों प्राप्त हो रहा है । सराहना इसलिये कि एक मार्मिक कहानी का वास्तविक रूपांतरण करने का प्रयास किया गया है ,कुछ दृश्य इतने वीभत्स है कि दर्शक तत्कालीन घटनाक्रम से ख़ुद को बंधा हुआ पाता है ,फ़िल्मांकन में कहीं भी नकलीपन हावी नहीं होता । सहयोग इसलिये कि पूर्व में महज साढ़े पाँच सौ स्क्रीन पर रिलीज़ हुई फ़िल्म को दर्शकों का ऐसा देशव्यापी प्रतिसाद प्राप्त हुआ कि अब फ़िल्म लगभग 2000 स्क्रीन्स पर चल रही है और तीव्रता से सुपरहिट की श्रेणी की और गतिमान है । इसके विपरित ” राधेश्याम ” जो इस वर्ष की बहुप्रतीक्षित फ़िल्मों में थी ,उसने हिंदी वर्ग के दर्शकों को निराश ही किया क्योंकि कहानी में नयेपन का अभाव था और मात्र कम्प्यूटर से बनाया गया सुंदर कल्पनालोक, घोर आभासी प्रतीत हो रहा था । हालांकि प्रभास की फैन फॉलोइंग के चलते फ़िल्म के तेलुगु और तमिल भाषा के वर्ज़न को बेहतर प्रतिसाद मिला । कहानी (पटकथा) जब तक किरदारों के अनुरूप न हो ,निर्देशक भी कोई करामात नहीं कर सकता । ओटीटी प्लेटफॉर्म हाटस्टार पर अजय देवगन का स्टारडम भी काम नहीं आया । उनकी वेबसीरिज़ ” रुद्र -द एज आफ़ डार्कनेस ” भी अपनी घिसीपिटी कहानी और कमजोर कथानक के कारण वो जादू नहीं कर पायी जो आर्या और मिर्ज़ापुर जैसी वेबसीरिज़ ने किया था ।
कहानी में जब तक दर्शकों के लिए रोमांच नही परोसा जायेगा तब तक नीरस ही बनी रहेगी । विद्या बालन की एक दशक पूर्व आयी फ़िल्म कहानी जो महज आठ करोड़ के बजट में बनी थी परंतु निर्देशक सुजाय घोष की अंत तक दर्शकों को बांधकर रखनेवाली पटकथा और विद्या बालन के दमदार अभिनय ने फ़िल्म को न केवल बाक्स आफ़िस पर सफ़ल बनाया बल्कि बंपर कमाई भी करवाई ।
सिनेमा विश्लेषक होने के नाते मैं पहले भी यह कह चुका हूँ कि फ़िल्म की सफ़लता का नया मापदंड मज़बूत कहानी एवं बेहतरीन निर्देशन है ।
सलमान खान की गत वर्ष ईद पर ओटीटी पर आयी राधे ,उम्दा कहानी के अभाव में औसत फ़िल्म रही ।
अंततः यही कहूंगा कि आज युवा हो या प्रौढ़ ,हर दर्शक स्वस्थ मनोरंजन चाहता है ,बेहतरीन कहानी देखने की लालसा में सिनेमा का महंगा टिकट खरीदता है या ओटीटी की सदस्यता । कमज़ोर कहानियां ,सिनेमा को न केवल नकली बना रही है अपितु वो दर्शकों को सिनेमा से विमुख भी कर रही है ।।
©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी ( शायर एवं स्तंभकार )
© काज़ीकीक़लम
28/3/2 , इकबाल कालोनी ,अहिल्या पल्टन
इंदौर , जिला – इंदौर
मध्यप्रदेश