अरसात सवैया
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अरसात सवैया
(7 भगण+रगण)
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जीवन है बहुमूल्य बड़ा इसको मत व्यर्थ गँवा नित भोग में ।
ध्यान कभी उसका कर रे मन ढाल इसे तप में अब योग में ।।
योनि अनंत गया यह जीव मिला तन मानव खो मत रोग में ।
भूख लगे तड़पे मन ज्यों कब तू तड़पे अब ईश वियोग में ।।
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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