अरविंद सवैया
आयोजन विषय – अरविंद सवैया छन्द।
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परदेश बसे सुधि लेत नहीं, मन विह्वल है झरता दृग नीर।
बिलमाय लयी सखि सौतनिया, उसमें दिखती उनको अब हीर।
वह दूर गये अरु भूल गये, यह सोच सदा मन होत अधीर।
बिन साजन कौन सुने बतिया, किससे कहती हिय की सब पीर।।
संजीव शुक्ल ‘सचिन’