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27 Mar 2022 · 1 min read

अरविंद सवैया

🦚
अरविंद सवैया
(8 सगण + लघु)
************
जब से यह जीवन प्राप्त हुआ तब से बिसरा हमसे प्रभु धाम ।
मन मोह बसा मद लीन हुए तन में फिर आन बसा चुप काम ।।
हम यौवन पा मजबूर हुए अति पाप किये न लिया हरि नाम ।
अब साँझ हुई इस जीवन की अब तो भज ले मन तू सिय राम ।।
*
कितने तुम कोष भरो अपने पर संग न जावत एक छदाम ।
गहने तुम जोड़ रहे इतने तन धार न पाय सको कुछ ग्राम ।।
चिनवाय रहे कितनी तुम मंजिल भूल गये तजना यह धाम ।
तय है तन ये इस धूल मिले कर चेत अरे भज ले सिय राम ।।
*
राधे…राधे…!
🌹
महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
***
🌳🌳🌳

Language: Hindi
263 Views
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