** अरमान से पहले **
** गीतिका **
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स्वयं मां खा नहीं सकती कभी संतान से पहले।
छलकता स्नेह है कारण सभी अरमान से पहले।
जमाने में भरोसा सोच कर ही तुम किया करना।
बहुत गुणगान होता है यही अपमान से पहले।
बहुत सौंदर्य है अनुपम कहीं तुम खो नहीं जाना।
जरूरी सावधानी है खिली मुस्कान से पहले।
समझ लेना सहजता से कहीं कोई मिले हमको।
नहीं मन खोलना हमको किसी अंजान से पहले।
सफ़र में हर समय हमको कदम हर फूंक कर रखना।
कहीं धोखा न हो जाए सही पहचान से पहले।
अचानक ही मुहब्बत का कभी मत सिलसिला करना।
कभी जब भी मिला करना किसी नादान से पहले।
यही है रीत सदियों से चली आई जमाने में।
बहुत अपमान मिलता है यहां सम्मान से पहले।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, २०/१०/२०२३