अयनांत और विषुव
अयनांत और विषुव
जीवन शायद गोलाकार है
जो घूमकर वापस आ जाता है
एक चक्र के समान बार बार।
बीच में मानव प्रयत्न करता है
बना रहे उसका जीवन- उत्तरायण
जिसमें चमकता रहे अयनांत पूरे साल।
परंतु घूम फिरकर जीवन
विषुव हो जाता है
और चक्राकार जीवन अंततः समाहित हो जाता है
एक अनन्त प्रकाशित सत्य में
जो अनवरत है, और है सर्वत्र विद्यमान।