अम्मा जी का आशीर्वाद
कड़ाके की ठंड थी , सब गरम कपड़ो में अपने
को ढके थे ।
अचानक अम्मा जी को निमोनिया हो गया था , और उन्हें अस्पताल में भरती कर दिया था , 90 साल की अम्मा जी जिजीविषा के कारण जिन्दगी और मौत से खेल रही थी और आखिर में उन्होंने मौत को भी
हरा दिया था ।
अब चौबीसों घंटे तो कोई अम्मा जी सेवा और साथ नहीं रह सकता था , हालांकि उनके तीन बेटे और एक बेटी थी , याने भरा पूरा परिवार था , पर वही बात , समय किसी के पास नहीं था । सब अपने आफिस और कारोबार में व्यस्त थे । आखिर काफी खोजबीन के बाद अम्मा जी देखभाल के लिए कमला बाई मिल गयी थी यही कोई चालीस साल की रही होगी , पति का देहान्त हो गया था , दो बच्चे थे । घरों में काम करके वह बच्चों को पढ़ा लिखा रही थी ।
कमला बाई को अम्मा जी की देखरेख की जिम्मेदारी सोपीं गयी थी । तीनों भाई दो दो हजार मिला कर कमला बाई को देने को राजी हुए । भाईयो और उनकी पत्नियों ने सोचा अरे दिन भर की चिल्ल-पों से तो अच्छा है कि दो दो हजार दे दो ।
अम्मा जी , कमला बाई से बहुत खुश थी , वह बहुत अच्छे से उनक सेवा कर रही थी ।
लेकिन एक बात थी , अम्मा जी बुढ़ापे की देहरी में थी और कब उनके दिमाग में क्या आ जाए और कमला बाई को रूपया पैसा न दे दें इसलिए परिवार का एक न एक सदस्य कमरे में मौजूद रहता था ।
कमला बाई कड़ाके ठंड में भी सिर्फ एक साड़ी में गुजर रही थी , इस और किसी का ध्यान नहीं था ।
कमला बाई के हाथों खाते पीते आखिर एक दिन अम्मा जी दुनियाँ से चल बसीं ।
कमला बाई सगी बेटी से भी ज्यादा रो रही थी और भागदौड़ कर सब काम कर रही थी ।
ठठरी जला कर सब घर आ गये थे और अम्मा जी के आखरी समय में उपयोग में लाये गये शाल रजाई गद्दे बाहर फैंकने की बात चल रही थी क्यो कि अब मरे- गड़े की चीजें घर में नहीं रखनी थी । कमला बाई को कल से नहीं आने के लिए कह दिया था , कायदे से उसे बीस दिन के पैसे देने थे , परन्तु सब जान कर भी अनजान थे । रात हो चली थी ।
अम्मा जी के सब सामान की गठरी बना कर कमला बाई को कचरे में फैंकने के लिए दे दी थी ।
अपने सिर पर रखी गठरी से कमला बाई को और ज्यादा ठंड सताने लगी थी । उसने सोचा इन चीजों को कचरे में फैंकने से सुबह तक तो यह कीचड़ में खराब हो जाऐगे और किसी काम के नहीं रहेंगे । उसके पैर अपने घर की तरफ मुड़ गये ।
घर में बच्चे चटाई पर कुकडे मुकडे सो रहे थे । कमला बाई ने गद्दे बिछा कर बच्चों को लेटाया फिर रजाई उड़ाई फिर खुद भी रजाई में घुस गयी ।
आज उसे बहुत प्यारी नींद आ रही थी ऐसा लग रहा था मानों अम्मा जी अपने हाथ उसके और बच्चों के सिर पर फैर कर आशीर्वाद दे रही हो ।
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल