अमृत वचन
***अमृत वचन ***
मात्-पिता की करे जो भक्ति
उसकी हरे गोविंद विपत्ति
मात्- पिता का हो जो बैरी
हो जाए उसका जग बैरी ।
छोड तात , परमपिता को
जो नितदिन शीश नमावे
अहि नर इस जग मे
काहू से सम्मान न पावे ।।
वो सच ही क्या
जो इस दुनियां में
काहू के भी काम न आवे
बढ़कर होता है झूठ भी सच से
जो काहू की जान बचावे ।।।
***दिनेश कुमार गंगबार