अमृताक्षर—
नीरम् मथनेन लक्ष्मी क्षीर मथनेन घृतम्।
मेघ:मथनेन आप:विद्यायै मथेन्द्रियम् ।। ३।।
गुरूर्ज्ञानम् गगनसदृशं धारेण धरायारपि गुरू:।
चेत चेतना शून्य भूवि: इदम् ज्ञानम् वायुसदृशं ।। ४ ।।
उमा झा
नीरम् मथनेन लक्ष्मी क्षीर मथनेन घृतम्।
मेघ:मथनेन आप:विद्यायै मथेन्द्रियम् ।। ३।।
गुरूर्ज्ञानम् गगनसदृशं धारेण धरायारपि गुरू:।
चेत चेतना शून्य भूवि: इदम् ज्ञानम् वायुसदृशं ।। ४ ।।
उमा झा