अमृतध्वनि छंद
अमृतध्वनि छंद
सपना ऐसा हो सदा,जहां भावना रत्न।
रहे सुगंधित कल्पना,शांति लोक का यत्न।।
शांति लोक का यत्न, मधुर हो,मोहक छाया।
सत्य राह हो,स्नेह चाह हो,वैदिक काया।
सब यथार्थ में,लगें सत्य में,सुन्दर अपना।
नहीं नींद में,सदा चेतना,में प्रिय सपना।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र,हरिहरपुर,वाराणसी -221405