अमानुषिक प्रवृत्ति ( *राधा छंद )
राधा छंद आधारित गीत (वार्णिक) १३ वर्ण
मापनी:- २१२२ २१२२ २१२२ २१२२
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आज वेदों को भुला विज्ञान क्यों भाता?
दम्भ झूठी शान का है क्यों बना दाता?
शान झूठी पाल बैठा दंभ है जीता।
आदमी ही आदमी का रक्त है पीता।
पश्चिमी सिद्धांत बोलो क्यों लगा भाने?
नग्नता ही नग्नता है क्यों लगा छाने?
छोड़ सारे कर्म सच्चें झूठ से नाता।
दंभ झूठी शान का है क्यों बना दाता?
शुद्धता को स्वाद की क्यों दे रहा ताने।
क्या भला तू खा रहा वो राम ही जाने।
दुग्ध घी को भूल बैठा मांस ही खाना।
कष्ट में जीता सदा है कष्ट ही पाना।
आसुरी संगीत छेड़े गीत है गाता।
दंभ झूठी शान का है क्यों बना दाता?
है जड़ें जो सभ्यता की मान दो प्यारे।
जिन्दगी में हैं जरूरी ध्यान दो प्यारे।
नित्य की झूठी तरक्की से नहीं फूलों।
वेद जो बोलें सुनो देखो नहीं भूलो।
धर्म से होता जुदा वो खाक ही पाता।
दंभ झूठी शान का है क्यों बना दाता?
✍️ पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण, बिहार