अब हम रोबोट हो चुके हैं 😢
हम रोबोट हो चुके है ,
इश्क़ की गलियां अनजान हो गई ,
लहजे रुक से जाते हैं चक- चकाते नही ,
लबों पर न खुन्नस रहा ,
न रही हँसी मजाक के खुरापात ,
समतल हो गया है यह मैदान ,
अब हम रोबोट हो चुके है ।
कुछ-कुछ कहते रुक सा जाना , आदत हो गई
बंजर सा मुख हो गया नाप तौल के लहजे में ,
सब कुछ धीरे – धीरे खत्म हो रहा है ,
कहा से लाये बचपना ,
इश्क़ की गलियां वीरान हो गई , प्रेमी मर गया
हम रोबोट हो चुके हैं
अब हँसता चेहरा कहाँ से लाये ।
लहजे अब रुक से गए
चक-चकना छूट सा गया
खामोशी अब झलकती है ,
मनहूसियत अब तरेरती है ,
अशांत सा मन किलकारियाँ खोजता है
अकेलापन खुद झंझोरता है
कहा से लाये अब …वह चेहरा ….वह वाकपटुता…. वह वाचालता…..वह हँसी -मजाक
अब तो हम रोबोट हो चुके हैं ।