*अब न वो दर्द ,न वो दिल ही ,न वो दीवाने रहे*
अब न वो दर्द ,न वो दिल ही ,न वो दीवाने रहे।
अब न वो साज ,न वो सोज ,न वो मायने रहे।
उमर के भंवर में जिंदगी तो कटी पर जी न सके,
अब न वो उम्मीद ,न वो वायदा,न वो बहाने रहे।
सोचता हूं कि कहां जाऊं मैं ,किधर रहूं अब मैं,
अब न वो घर , न ही वो दर ,न वो अफसाने रहे।
कोई पूछता नहीं वजह हमारे जीने की अब तो,
अब न वो यार,न वो वफ़ा,न वो बीते ज़माने रहे।
साकी तू अब भी किस के लिए बैठा है यहां,
अब न वो जाम,न वो मयखाने,न वो पैमाने रहे।
सुधीर कुमार
सरहिंद फतेहगढ़ साहिब पंजाब।