अब तो सब बोझिल सा लगता है
अब तो सब बोझिल सा लगता है
वो जो चाँद है तिल सा लगता है
एक आकार में देखा है बचपन से
वो टूटा हुआ दिल सा लगता है
जिसे चाहा था मैंने हद होने तक
वो चराग़ भी मुख़िल सा लगता है
एक हल्की सी आहट से बेकल हुए
दिल ए मोहब्बत मुश्तग़िल सा लगता है
उसकी यादों का खंजर धँस गया
अब बचना मुश्किल सा लगता है