अब तो लौट आओ – एक फौजी की नवविवाहिता
मेरे प्रियतम कब आओगे सजनी तुम्हारी राह ताकती
मन भी प्यासा तन भी प्यासा प्यासी अखियां राह ताकती
कह कर गए थे लौट आने को अगले बरस के सावन में
बरसों बरस के सावन बीते अगले सावन के आने में
ना कोई चिट्ठी ना कोई पाती ना ही संदेशा आया है
चैन ना आता विरही मन को तुमको भी तरस ना आया है
तन तो तुम्हारी विरासत है पर मन पर जोर नहीं चलता
इत उत भटकत है बैरी मन रोके से भी नही रुकता
राह ताकती मेरे प्रियतम पथरा सी गई है अखियां मेरी
कब आओगे कब लोगे बाहों में पूछ रही है सखियां सारी
सालों बाद खबर आई है प्रियतम तुम्हारे आने की
तभी कानों में सुनाई पड़ी धुन यह मातमी गाने की
गए थे अपने पैरों पर क्यों फिर कंधे चढ़ कर आये हो
आए हो पर यह तो बताओ तुम मेरे लिए क्या लाए हो
आने से कुछ पहले गर तुम आने का संदेशा भिजवा देते
राह में तुम्हारी मेरे प्रियतम गुलाब और इत्र छिड़कवा देते
मैंने सालों साल विरह में काटे तुम्हें पल का भी इंतजार नहीं मुझको भी संग अपने ले लो तन्हा जाने का अधिकार नहीं
वीर कुमार जैन
11 जुलाई 2021