अब तू किसे दोष देती है
अब तू किसे दोष देती है।
अब तू ऐसे क्यों रोती है।।
अब तू किसे—————–।।
तुमको तब क्यों होश नहीं था।
सुंदरता पे अभिमान बहुत था।।
क्यों तू मचली महलों के लिए।
तेरा क्या कोई घर नहीं था।।
हुई जवानी में क्यों पागल।
अब क्यों पछतावा करती है।।
अब तू किसे —————।।
अपनों की सलाह तुमने ठुकराई।
मर्यादा को आग तुमने लगाई।।
अपना वर खुद तुमने तलाशा।
फिर क्यों उससे तेरी हुई लड़ाई।।
लांघी तुमने घर की दहलीज।
बदनाम किसे अब करती है।।
अब तू किसे—————-।।
शोभा बनकर तू बाजारों की।
बातें बनकर तू गलियारों की।।
किया तुमने इज्जत का सौदा।
बनकर मदिरा मयखानों की।।
डाल गले में बाँहें तू झूमी।
अब राह तू किसकी देखती है।।
अब तू किसे —————–।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)