अब ठहरना चाहता हूँ, कुछ दिनों
तुम्हारे शहर में कहीं बसना चाहता हूँँ, कुछ दिनों,
बहुत भटका हूँ, अब ठहरना चाहता हूँ, कुछ दिनों।
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सोचता, चलता, तलाशता, थकता, बिखर चुका हूँ,
तुम्हारे ख़यालों में सिमटना चाहता हूँ, कुछ दिनों।
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कहने को उम्र आधी, मगर तकरीबन गुज़र ही गई,
माजी डायरी के पन्ने पलटना चाहता हूँ, कुछ दिनों।
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ज़माने पे ख़ूब लिखा, आशिक़ी को तबज्जो न दी,
मिज़ाज़, आशिक़ाना रखना चाहता हूँ, कुछ दिनों।
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रौशन दीवाली और, तह-ए-दिल मुबारकबाद तुम्हें,
उजाला जिगर में भी, देखना चाहता हूँ, कुछ दिनों।