*अब गुलालों तक के भीतर, रंग पक्के हो गए (मुक्तक)*
अब गुलालों तक के भीतर, रंग पक्के हो गए (मुक्तक)
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चाय के कप आजकल, समझो बुदक्के हो गए
गाल नवयुवकों के पिचके, ज्यों मुनक्के हो गए
फूल टेसू के भिगोने का चलन जाता रहा
अब गुलालों तक के भीतर, रंग पक्के हो गए
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451