अब क्या करोगे मेरा चेहरा पढ़कर,
अब क्या करोगे मेरा चेहरा पढ़कर,
क्या कोई जिंदा हुआ है एक बार मरकर।
कह देते हैं लोग कि रह लेंगे हम तेरे बिन,
मगर कोई जिया है क्या अपने मेहबूब से बिछड़कर।
चांद को देखने की तमन्ना है तो जाना पड़ता है उस पे,
भला चांद भी कभी उतरा है क्या जमीं पर।
कौन कहता है कि महक नहीं होती है इंसानों में,
क्या कभी देखा है तुमने गुलों सा बिखरकर।
बहुत कुछ दे सकते थे तुम मुझे नफरत के सिवा,
पर क्या देखा तुमने इससे आगे निकलकर।
“ज्योति रौशनी”