अब आ भी जाओ पापाजी
हुई कौन खता तुम रूठ गए यह बात बताओ पापा जी ।
तुम रूठ गए जग रूठ गया अब आ भी जाओ पापा जी ।।
होने ना दी नम आंख कभी मुस्कान मेरी तुम ही तो थे ।
नादान अनभिज्ञ बालक था मैं पहचान मेरी तुम ही तो थे ।।
तुम स्वाभिमान, तुम अलंकार, तुम ही तो थे सूत्रपात मेरे ।
थे मेरे जीवन का सबसे इक _अनमोल पड़ाव पापाजी ।।
हुई कौन खता तुम रूठ गए………..
जब जाना ही था तो चुपके से यह राज मुझे बतला देते ।
दुनियादारी की समझ जरा कुछ तो मुझ को सिखला देते ।।
हर वक्त व्यक्ति यहां अवसरवादी षड्यंत्र उपजता है मन में ।
दुनियादारी जग जेठ दुपहरी जिसमें जैसे पीपल की छांव पापाजी ।।
हुई कौन खता तुम रूठ गए……….
पापा मैंने तुमसे ही तो गिरकर के संभलना सीखा है ।
तरु थाम तर्जनी पापा मैंने तुमसे ही चलना सीखा है ।।
है घुटन बहुत अंतर्मन में टुकडे टुकड़े दिल टूट रहा ।
चुपके से मेरे ख्वाबों में आकर मुझे गले लगाओ पापा जी ।।
हुई कौन खता तुम रूठ गए………..
✍️संदीप सागर
कायमगंज जिला फर्रुखाबाद