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3 Nov 2024 · 1 min read

अफ़सोस इतना गहरा नहीं

अफ़सोस इतना गहरा नहीं
कि सब कुछ मिटा देने को मन करे
ना ही दुख इतना गहरा
कि ख़ुद को ख़त्म कर लूँ
बस निष्प्रभ हूँ,
डगमगाता , लड़खड़ाता सा
कितने फ़ैसले जो मैंने लेना चाहे
उन्हें लेने और ना लेने का
खामियाजा भुगतता हुआ
कभी सोचता हूँ अपने अकेलेपन में
अगर ऐसा होता तो क्या होता
अगर ये कर लिया होता तो क्या होता
क्या ये होता.. या फिर…..
इन्हीं सवालों में अक्सर उलझ जाता हूँ

हिमांशु Kulshrestha

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