अफसोस तो करना ही पडेगा
मनुष्य एक यांत्रिक व्यक्तित्व है, मनोवैज्ञानिक, मनोदैहिक, मन से शरीर को,
शरीर से मन को तरंगें प्रभावित करती है.
क्रोध एक देह सुरक्षा के लिए जो निसर्ग की देन है, एक क्रोध जिसे अहंकार के वशीभूत होकर दमन करता है,
ऐसे समय पर मनुष्य कहेगा ही कहेगा.
मुझे कोई अफसोस नहीं
जो गलती पर और गलती का आधार है,
गलती महसूस करके आदमी हमेशा कहता है, मुझे बेहद अफसोस है.
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एक अध्यापक विनोद ने एक बच्चे को स्कूल लेट आने बतौर बिन सच्चाई जाने प्रताड़ित किया, और बच्चा अपनी जगह सच था, फिर भी अध्यापक ये कहे.
मुझे कोई अफसोस नहीं है,
तो कुछ कहने को शेष नहीं बचता.
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लोकतांत्रिक गणतंत्र में संविधान ही अधिकार और कर्तव्यों के वहन करने की कडी होती है, संघ में रहकर अपने अधिकारों की रक्षा, खुद में एक मूलभूत आधार, धार्मिक आस्था एक निजी मामला,
सरकारों का काम प्रत्येक व्यक्ति यानि नागरिकों के निजी अधिकार और शिक्षा/चिकित्सा/रोजगार व्यवसाय और वित्तीय सुरक्षा प्रदान करके समानता लाना.
धर्म पर आस्था और विश्वास .
धर्म द्वारा प्रतिपादित व्यवहार पर निर्भर करता है और करते रहेगा.
भौतिक सुरक्षा पर मनुष्य चुप नहीं रह सकता और रहना भी नहीं चाहिए.
अगर कोई ऐसा नहीं करता.
उसे अफसोस करना ही पडेगा.
वह अंदर से टूट जायेगा.
उसका अपना जमीर.
उसे जीने नहीं देगा.