अफवाह
चार अक्षर के इस शब्द सामान्य न समझिए।आपको पता है और हो सकता है कि अफवाहों के दुष्प्रचार का दुष्परिणाम आपने, आपका परिवार, रिश्तेदार, इष्ट मित्र अथवा अड़ोसियों पड़ोसियों ने झेला और महसूस भी किया हो। अफवाह की एक छोटी सी चिंगारी बड़ी घटना के रूप में प्रज्जवलित होकर, न केवल जन धन की हानि करती है, बल्कि साम्प्रदायिक दंगों का वीभत्स चेहरा भी बन जाती है, भाईचारा का लोप होने लगता है। कल तक भाई भाई की तरह रहने वाले लोग एक दूसरे को मरने मारने पर उतारू हो जाते हैं। एक दूसरे से डर कर दूर भागने छुपने लगते हैं।
यह विडंबना ही है कि महज अफवाह के सहारे छोटी सी बात बड़ी जल्दी इतना फैल जाती है जिसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती, सच्चाई जानने की कोशिश के बजाय अफवाहों को एक दूसरे के माध्यम से आगे बढ़ाते हुए झूठ को सच का अमली जामा पहनाने की खातिर असामाजिक तत्व हिंसा, लूटपाट और बहुत बार धार्मिक उन्माद फैलाकर अपना और अपने राजनीतिक धार्मिक आकाओं को खुश करने, अथवा उनके भड़काने अथवा अपने को स्थापित करने, और बहुत बार राजीतिक चेहरा बनने की कोशिश में अफवाहों का सहारा लिया जाता है और इस मौके को अपने लिए अप्रत्याशित अवसर मानकर लाभ लेने की कोशिश में लोकतांत्रिक और मानवीय मूल्यों का गला घोंटने को उतावले हो जाते हैं।
संक्षेप में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि अधिकांश अफवाहें बेसिर पैर वाली होने के बाद भी तमाम तरह की हिंसा, दंगा फसाद, सांप्रदायिक रंग और जाति धर्म का विभेद फैलाने का सूत्र बनता है।
इसलिए हमें अफवाहों की सच्चाई देखने जानने और समझने की जरूरत है न कि एक चिंगारी को शोला बनाने में मदद करके तांडव करने या कराने की। क्योंकि ऐसा करके हम अपने मानव होने के अधिकारों होने का खून करके अपनी राक्षसी प्रवृत्ति का उदाहरण बनकर रह जाते हैं।
सुधीर श्रीवास्तव गोण्डा उत्तर प्रदेश