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9 Dec 2024 · 2 min read

*अपराध बोध*

Blogger Buzz Dr Arun Kumar shastri

अपराध बोध

एक आदमी भगवान शिव शंकर जी के मंदिर गया और नाक रगड़ रगड़ कर माफ़ी मांगने लगा। साथ ही उसकी आंखों से आँसू भी बहते जा रहे थे।

मैं उस की इस दशा को बहुत देर से देख रहा था। उसकी क्या मेरी भी यही दशा थी। इसी लिए मैं भी प्रभु जी के दर्शन करने उनके मंदिर आया था। कहानी के माध्यम से मानवीय संवेदना और स्थिति को समझने का प्रयास करना मित्रों मेरी या उसकी स्थिति की बात नहीं है ये हम सभी की स्थिति है ।

आज से नहीं शुरू से जब से हम सभी अपनी अबोधिता से बाहर आए हैं तभी से ये स्थिति लागू होती है ।
अब सोचेंगे कि आप ये शब्द अपने उपनाम या साहित्यक प्रकल्प के स्वरूप जो इस्तेमाल करते, वही न।
ठीक समझे लेकिन उस और इस में थोड़ा भ्रम है। वो कैसे, वो ऐसे कि अबोध एक संज्ञा है और अबोधिता एक विश्लेषण की विशेषता।

तर्क में न जाना पड़े इस लिए इस को मात्र इतना ही समझ लें, सादर ।

अब आप इस अपराध बोध को पूरी तरह से समझने का प्रयास कीजिए ये होता क्या है। मान लीजिए कि आप अपने कार्य हेतु अनन्य भाव से जुड़े हैं और उसके संपादन के चलते आप प्रति पल कोई न कोई ऐसा कार्य करते चले आ रहे जो कि आपकी आत्मा न तो स्वीकार करती न ही वो कार्य न्याय संगत होता और न ही आप उस कार्य से स्वयं को अलग कर पा रहे होते हैं अर्थात आपको उस कार्य में अधिकाधिक लाभ ही लाभ नजर आ रहा होता है और आप उस कार्य को ऐसे समर्पित होकर करते हैं जैसे यदि ये न हुआ तो प्रलय आई ही आई समझो , जब वो कार्य पूरा हो जाता है तो आप किसी अन्य कार्य में उलझ जाते हैं फिर किसी अन्य कार्य में और फिर अन्य कार्य में ये सिलसिला जारी रहता है जीवन पर्यन्त क्योंकि ये कार्य खत्म होने वाली वस्तु नहीं ।
लेकिन वो कार्य स्वार्थ पर आधारित होता है, पूर्ण तया मानवीय मूल्यों के विपरीत होता है।
फिर एक दिन हमें इस प्रक्रिया से निकलना मुश्किल हो जाता है।
और हाथ में कुछ नहीं होता मात्र पैसों के

फिर हमारी बुद्धि मन तन सब उसी के अनुसार चलता है। और आत्मा एक अपराध बोध से ग्रसित हो जाती है।
क्योंकि हमारी अबोधिता हमारी निर्विचारीय क्षमता हमारी निर्विकल्पता नष्ट हो जाती है।

हम बॉडी से तो जुड़े रह जाते हैं। मात्र शरीर । लेकिन आत्मा से अछूत

जब होश आता है तब उपरोक्त मानव और मेरे जैसे लेखक जैसी स्थिति होती है। फिर कितना भी नाक रगड़ ले कुछ नहीं होता। क्योंकि तब हमारा समय जो कुछ भी मिला था समाप्त हो चुका होता है।

Tag: Article
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